
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक दिलचस्प अपराधिक मामले में सुनवाई के बाद कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं है कि किसका बछड़ा मारा गया और कब। इस संबंध में कोई एफआईआर दर्ज हुई या नहीं। याचिकाकर्ताओं ने किसके सामने यह अफवाह फैलाई कि मृतका ने बछड़ा मारा था।
जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की सिंगल बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांतों के अनुसार यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकार्ताओं ने मृतका को आत्महत्या के लिए उकसाया। कोर्ट ने इस मत के साथ आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 5 वृद्धाओं के खिलाफ लंबित प्रकरण निरस्त कर दिया।
अभियोजन के अनुसार, रघुवंशी मोहल्ला रामपुर, नर्मदापुरम निवासी 70 वर्ष की वृद्धा रामकुंवर बाई रघुवंशी ने 20-21 सितंबर 2017 की दरम्यानी रात फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके पुत्र ने पिपरिया थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि मोहल्ले की प्रेमबाई, दुलारी बाई, कला बाई व प्रेमबाई भद्दी ने करीब दो माह पूर्व अफवाह फैलाई।
उन्होंने सभी से बताया कि मृतका ने गाय का बछड़ा मार डाला। उसे समाज से बंद कर देंगे। पंचायत बैठाई जाएगी। 20 सितंबर 2017 को मृतका ने पिपरिया थाने में उक्त सभी महिलाओं के खिलाफ झूठी अफवाह फैलाने की रिपोर्ट भी दर्ज कराई।उक्त महिलाओं के उकसाने के चलते मृतका ने आत्महत्या कर ली।
इस पर पांचों महिलाओं के खिलाफ भादवि की धारा 306 के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। यह प्रकरण एडीजे कोर्ट पिपरिया के समक्ष लंबित है। सात साल नहीं हुई सुनवाई - इसी मामले को निरस्त कराने के लिए आरोपित बनाई गई पांचों महिलाओं की ओर से 2018 में यह याचिका दायर की गई थी। सभी की आयु 60-77 वर्ष के बीच है।
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मामले की सुनवाई अगस्त 2018 से नहीं हुई थी। हाईकोर्ट के पांच साल से पुराने मामले निराकृत करने की मुहिम के तहत इस वर्ष अगस्त में फिर यह मामला सुनवाई के लिए लगा। इसके बाद लगातार फैसले तक सुनवाई हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता वृद्धाओं का आपस में कोई संबंध नहीं था। उनके द्वारा मृतका को आत्महत्या की हद तक उकसाने का भी कोई सबूत नहीं है। इसलिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आत्महत्या के दुष्प्रेरण का अपराध नहीं बनता।