नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। वन्यजीवों के प्राकृतिक निवास में लगातार बढ़ते इंसानी दखल की वजह से वन्यजीवों का प्राकृतिक निवास कम होता जा रहा है। वहीं खनन माफिया के कारण जलचर प्राणियों का रहवास भी सुरक्षित नहीं रह गया है। मगरमच्छों के लिए संरक्षित घोषित परियट नदी के किनारे खनन माफिया मिट्टी और मुरम का अवैध खनन करते-करते मगरमच्छों के प्राकृतिक रहवास तक पहुंच चुके हैं।
धड़ल्ले से रेत का अवैध उत्खनन किए जाने से मगरमच्छों को अपना प्राकृतिक ठिकाना छोड़ गांव का रुख करना पड़ रहा है। मादा मगरमच्छ की मांद तक पहुंचे चुके खनन माफिया के कारण मादा मगरमच्छ सुरक्षित व एकांत क्षेत्र की तलाश में ग्राम पंचायत घाना के चकरघटा क्षेत्र व आसपास के क्षेत्र में पहुंच कर अंडे दे रहीं हैं। अंडे से निकले मगमच्छ के बच्चे गांव व घरों में घुस रहे हैं जिससे ग्रामीणों में दहशत व्याप्त है। क्योंकि इन बच्चों में तीन फीट तक लंबे मगरमच्छ भी शामिल है।
चकरघटा, पुराने होमगार्ड कार्यालय के नाले के पास दिए थे अंडे
वन्यप्राणी विशेषज्ञ शंकरेंद्रनाथ ने बताया कि वर्तमान में कुछ मगरमच्छों ने अपना नया ठिकाना घाना के चकरघटा से लेकर पनागर वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले रिठौरी के आसपास के खेतों में बना लिया है। चकरघटा क्षेत्र के गांव के बाहर खेतों के आस-पास और होमगार्ड कार्यालय के समीप नाले में मादा मगरमच्छ ने अंडे भी दिए हैं।
अब इन अंडों से निकल कर मगरमच्छ के बच्चे भोजन की तलाश में गांव में विचरण करते देखे जा रहे हैं। घरों में भी घुस रहे हैं। पिछले एक माह के दौरान छह छोटे और दो बड़े मगरमच्छों को गांव के लोगों ने पकड़ कर वापस परियट नदी में छोड़ा है। इसमें न सिर्फ छोटे बल्कि तीन फीट तक मगरमच्छ के भी शामिल है। ग्रामीणों काे डर है कि यदि किसी दिन छह से सात फीट लंबे मगरमच्छ गांव में पहुंच गए तो बड़ी घटना हो सकती है। वन विभाग की टीम जरूर गांव में अलर्ट जारी करती रहती है।
परियट नदी में एक हजार से ज्यादा मगरमच्छ
वन्य प्राणी विशेषज्ञ शंकरेंदु नाथ बताते है कि परियट नदी में अच्छी गहराई और चौड़ाई है. इसके एक और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की जमीन है. इसलिए इस लंबाई में जो जंगल है, उसमें किसी की आवक जावक नहीं है। इसी की वजह से यहां मगरमच्छों ने अपना निवास बना लिया है। परियट नदी में करीब एक हजार मगरमच्छ है। परियट नदी मटामर, परशुराम कुंड, घाना सहित आस-पास क्षेत्रों से होकर गुजरती है।
यही कारण है कि मगरमच्छ आस-पास के गांव तक पहुंचने लगे हैं। जिससे क्षेत्र के लोग उनके साथ रहना तो सीख गए हैं लेकिन मगरमच्छ के हमले से घबराए भी रहते हैं। हालांकि गांव वालों का कहना है कि बीते 30 सालों से मगरमच्छ यहां रह रहे हैं, लेकिन अब तक किसी मगरमच्छ ने किसी आदमी पर जानलेवा हमला नहीं किया है।
इस क्षेत्र को मगरमच्छों के प्राकृतिक निवास के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। यदि सरकार का थोड़ा भी प्रयास यहां हो जाता है, तो इस क्षेत्र में क्रोकोडाइल सेंचुरी विकसित की जा सकती है। क्योंकि पूर्व में भी क्रोकोडाइल सेंचुरी बनाने के प्रयास किए जा चुके हैं।