Bageshwar Maharaj in Jabalpur: कृष्ण जन्म के साक्षी बने लाखों श्रद्धालु
पनागर तो मानो कृष्ण जन्मस्थली मथुरा बन गया। सर्वत्र नंदलाला के जन्म की धूम थी। राधे-राधे, कृष्णा-कृष्णा के गगन भेदी सुर लाखों कंठ से गूंजे।
By Jitendra Richhariya
Edited By: Jitendra Richhariya
Publish Date: Tue, 28 Mar 2023 11:05:41 PM (IST)
Updated Date: Tue, 28 Mar 2023 11:05:41 PM (IST)

जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। मंगलवार को थी तो नवरात्रि की सप्तमी, पर बागेश्वर पीठाधीश्वर पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री महाराज की भागवत कथा प्रसंग में आए कृष्ण जन्मोत्सव ने इसे जन्माष्टमी बना दिया। पनागर तो मानो कृष्ण जन्मस्थली मथुरा बन गया। सर्वत्र नंदलाला के जन्म की धूम थी। राधे-राधे, कृष्णा-कृष्णा के गगन भेदी सुर लाखों कंठ से गूंजे। पूरा पंडाल फूलों-गुब्बारों से सजाया गया था। रंग-अबीर-रांगोली की सजावज के बीच परमानंद सजीव हो उठा। आयोजक पनागर विधायक इंदू तिवारी के परिजन-पुरजन सहित कथा पंडाल में बैठे हर श्रद्धालुओं ने ये अनुभव किया कि ये दिन ईश्वरीय कृपा के कारण उन्हें मिला है। इस अवसर के साक्षी बने भजन गायक अनूप जलोटा, जिनकी शानदार प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया। कथा के पूर्व बागेश्वर बालाजी सरकार के श्री चरणों में सामूहिक अर्जी भी लगाई गई। चौथे दिन शहर वासियों ने महाराजश्री के प्रति गहरी निष्ठा व प्रेम प्रदर्शित किया। आलम ये था कि महाराज श्री को तीन किलोमीटर तक सबको अभिवादन करते हुए चलना पड़ा। कृष्ण जन्म कथा के पूर्व उन्होंने ध्रव चरित, जड़भरत की कथा,रामकथा भी अनूठे अंदाज में सुनाई।
कर्म सुनीति से हों, सुरुचि से नहीं:
कथा के प्रारंभ में महाराज श्री ने राजा उत्तानपाद की कथा सुनाई, जिनकी दो रानियां सुनीति-सुरुचि थीं। उन्होंने कहा कि वस्तुत: उत्तानपाद हम ही हैं, और हमारी दो वृत्ति ही सुनीति-सुरुचि हैं। जो कर्म मनमर्जी से होते हैं वही सुरुचि है, जो शास्त्र सम्मत, गुरु सम्मत कर्म हैं वे सुनीति हैं। सुरुचि के पुत्र ध्रुव ऊंचे बैठे। हमारा लक्ष्य ऊंचा तभी होगा जब हमारे कर्म सुनीति मय हों। सबसे बड़ी सुनीति परमात्मा का मार्ग है। उन्होंने कहा कि भगवत प्रेम से सिद्धि ही आती है। पर सिद्धि त्याग के जो भगवान की तरफ बढ़ता है, भगवान उसका हाथ ही पकड़ते हैं।
प्रभु विश्वास से हो जीवन रोशन:
उन्होंने कहा कि भक्त ध्रुव ने जैसे भगवान के प्रति विश्वास से अपने जीवन के अंधेरे को उजाले में बदला, वैसा विश्वास हममें भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझसे लोग पूछते हैं कि भक्ति क्या है, तो मैं कहता हूं कि जीवन की अंधेरी रातों के दुख द्वंद भरे तूफानों में, विश्वास का दीप जलाने को भगवान की भक्ति कहते हैं, आंखों से बरसते हों आंसू, मुस्कान अधरों पर रहे, इक संग में रोने-गाने को भगवान की भक्ति कहते हैं। उन्होंने कहा कि कामना के पीछे भागोगे तो रोओगे, भगवान के पीछे भागोगे तो प्रसन्न रहोगे। सांसारिक सुख अंतिम मंजिल नहीं है, अंतिम मंजिल तो भगवान का द्वार है। भगवान की इच्छा में अपनी इच्छा को मिला लेना ही भक्ति है।
रामजी का बंदर बनो:
सुंदरकांड का प्रसंग सुनाते हुए महाराजश्री ने कहा कि हनुमानजी के कर्म भी शिक्षा देते हैं। काम खूब करो, पर काम काज अभिमान से करोगे तो वह काम काज होगा। काम भगवान को लेकर करोगे तो वह राम काज होगा। कर्म हम कर रहे, ये अभिमान है। ये रामजी करवा रहे, ये स्वाभिमान है। उन्होंने कहा कि सीता की खोज में गए सभी वानर अपने काम में लगे रहे, पर हनुमानजी आंख बंद कर राम नाम जप रहे। उन पर तरह-तरह के जतन का भी कोई असर हुआ। पर जब बताया गया कि आपका अवतार रामकाज के लिए हुआ तभी वे पर्वताकार हुए। हनुमानजी काम-काज के होते तो पहले ही पर्वताकार हो जाते। वे कामकाज के नहीं रामकाज के लिए हैं, इसलिए रामकाज के लिए पर्वताकार हुए। हमें भी राम काज के लिए पर्वताकार अर्थात अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए।
बाघेश्वर धाम के पगलई पगला:
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री आज कथा स्थल पर विलंब से पहुंचे। उन्होंने विलंब के लिए भक्तों से क्षमा मांगते हुए कहा कि मुझे दो बजे आना था। पर मैंने देखा कि बायपास की फोरलेन से लेकर पनागर के मार्ग पे जहां देखो वहीं बागेश्वर धाम के पगलई-पगला नजर आ रहे थे। आने में डेढ़ घंटे लग गए। सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी महाराजश्री का वाहन आगे नहीं बढ़ पा रहा था। श्रद्धालुओं की व्याकुलता देखकर वे तीन किलोमीटर तक वाहन पर खड़े होकर सबका अभिवादन करते हुए चल रहे थे।