
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट व न्यायमूर्ति बीपी शर्मा की युगलपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि बीमारी छिपाकर विवाह करना क्रूरता की श्रेणी में आता है। लिहाजा, पति द्वारा विवाह विच्छेद की मांग स्वीकार की जाती है।
मंडला निवासी महेंद्र कुशवाहा की ओर से कुटुंब न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें विवाह विच्छेद की मांग अस्वीकार कर दी गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि विवाह के बाद पता चला कि पत्नी मिर्गी की बीमारी से ग्रस्त है। यह बात ससुराल पक्ष से छिपाई थी।
जब मिर्गी के दौरे बार-बार पड़ने लगे, तब सच्चाई उजागर हो गई। जब पूछताछ की गई तो पत्नी व उसके मायके वालों ने बीमारी होने से इन्कार कर दिया। हाई कोर्ट ने पति का पक्ष मजबूत पाकर उसकी मांग स्वीकार कर ली।

जबलपुर कुटुम्ब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश विजय सिंह कावछा की अदालत ने अपने एक आदेश में साफ किया कि हिंदु पति का मुस्लिम पत्नी से विवाह प्रविधान अनुसार पहले से ही शून्य है, अत: शून्यीकरण का अावेदन निरस्त किया जाता है। आवेदक अरमान श्रीवास्तव ने शाहीन बेगम से विवाह किया था। विवाह के बाद विवाद की स्थिति निर्मित होने पर अदालत चला आया।

उसने हिंदू विवाह अधिनियम-1955 की धारा-पांच के अंतर्गत विवाह शून्यीकरण का आदेश पारित करने की मांग की। दोनों का संपर्क इंटरनेट वेबसाइट पर हुआ था। जिसके बाद मुलाकात हुई और मंदिर में विवाह कर लिया। आवेदक हिंदु धर्म को मानता है, जबकि उसकी पत्नी मुस्लिम धर्म की है। आवेदक की ओर से विवाह शून्यीकरण की मांग इसलिए अस्वीकार करने योग्य है, क्योंकि हिंदु विवाह अधिनियम-1955 की आवश्यक शर्तें पूरी न करने के कारण विवाह दिनांक से ही शून्य है।