नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। MP High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति अमरनाथ केसरवानी की युगलपीठ ने हाई कोर्ट में सात जजों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका निरस्त कर दी। हाई कोर्ट ने अपने नौ पेज के आदेश में साफ किया कि न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कालेजियम का अस्तित्व कानूनी रूप से पवित्र है। देश का कानून न केवल हर अदालत पर बल्कि सभी पर भी बाध्यकारी है, चाहे वो कार्यपालिका हो या विधायिका हो। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने गलत धारणा के तहत याचिका दायर की है। वह ऐसा समझता है कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश का कार्यालय एक सिविल पद के समान है, जबकि यह वास्तविकता से बहुत दूर है।
हाई कोर्ट का न्यायाधीश एक संवैधानिक कार्यालय है, जो केवल और केवल संविधानिक प्रक्रिया के तहत भरा जाता है। हाई कोर्ट जज की नियुक्ति के लिए संविधान में किसी भी विज्ञापन को जारी करने का प्रविधान नहीं है। इनके चयन के लिए लिखित या मौखिक परीक्षा का आयोजन नहीं किया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता मारुति सोंधिया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर जजों की नियुक्ति को चुनौती दी थी। अधिवक्ता उदय कुमार साहू ने दलील दी थी कि हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान में विहित सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज करके एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम पीढ़ी दर पीढ़ी भेजे जाते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि भारत के संविधान में सामाजिक न्याय व आर्थिक न्याय की आधार शिला रखी गई है, उक्त सामाजिक न्याय को साकार करने के लिए न्यायपालिका में सभी वर्गों का अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है। उन्होंने अपनी दलीलों के संबंध में करिया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट का हवाला भी दिया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में एक जाति वर्ग विशेष के ही जजों की नियुक्ति होने से बहुसंख्यक समाज के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है।
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही विशेष अनुमति याचिका यानी एसएलपी दायर की जाएगी। एसोसिएशन से जुड़े वकीलों का कहना है कि विधि एवं सामाजिक न्याय मंत्रालय भारत सरकार ने 2021 व 2022 में देश के समस्त हाई कोर्ट को पत्र प्रेषित कर आग्रह किया गया था कि संबंधित हाई कोर्ट के कालेजियम ओबीसी, एससी, एसटी, महिलाएं व अल्पसंख्यक वर्ग के अधिवक्ताओं के नाम जज के रूप में नियुक्त करने भेजे जाएं।