
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष मंगलवार को मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण मामले (MP Promotion New Rule) की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पूर्व में अधूरी रह गई बहस को पूरा किया गया। इसके बाद राज्य शासन की बहस प्रारंभ होनी थी। लेकिन मप्र शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता जान्हवी पंडित ने अवगत कराया कि राज्य का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन रखेंगे, जो अभी किसी अन्य प्रकरण की पैरवी में व्यस्त हैं। लिहाजा, सुनवाई जनवरी तक आगे बढ़ा दी जाए। हाई कोर्ट ने यह आग्रह स्वीकर न करते हुए मामले की गंभीरता के मद्देनजर अगली सुनवाई 16 दिसंबर को नियत कर दी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से लगभग आधे घंटे तक की गई अंतिम चरण की बहस में मूलभूत रूप से राज्य शासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन न किए जाने के बिंदु पर जोर दिया गया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत रेखांकित करते हुए प्रमोशन में आरक्षण की नई नीति को असंवैधानिक घोषित करने पर बल दिया गया। यह भी कहा गया कि सरकार ने बिना आंकड़े जुटाए प्रमोशन पालिसी लागू करने की तैयारी कर ली है, जो कि मनमानी का पर्याय है।
इस मामले में याचिकाकर्ता सपाक्स, अजाक्स संघ सहित 38 याचिकाओं पर एक साथ 11 वीं सुनवाई हुई। इसके साथ ही अनेक कर्मियों की हस्तक्षेप याचिकाओं को भी सुना गया। याचिकाकर्ताओं का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता नरेश कौशिक, अमोल श्रीवास्तव, डा. केएस चौहान ने रखा। जबकि हस्तक्षेपकर्ताआें की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह खड़े हुए। उन्होंने दलील दी कि प्रमोशन को एक स्तर के ऊपर दिया जाए, तो रिजर्वेशन काउंटर प्रोटेक्टिव होगी। एक ऐसी क्लास खड़ी कर देगी, जो कि बराबरी से ऊपर उठ जाएगी। उससे फिर दोष पैदा होगे, जो कि आर्टिकल 14 और 16 के सिद्धांत के अनुसार नहीं होगी।
राजधानी भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी व अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025 को चुनौती दी गई है। दलील दी गई कि वर्ष 2002 के नियमों को हाई कोर्ट के द्वारा आरबी राय के केस में समाप्त किया जा चुका है। इसके विरुद्ध मप्र शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है, इसके बावजूद मप्र शासन ने महज नाम मात्र का शाब्दिक परिवर्तन कर जस के तस नियम बना दिए।