
जबलपुर नईदुनिया प्रतिनिधि। रेलवे ने ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने के साथ अब बिजली बचत के लिए भी कदम उठाना शुरू कर दिया है। इसकी पहल जबलपुर सहित पश्चिम मध्य रेलवे जोन की सीमा में आने वाले भोपाल और कोटा मंडल में भी शुरू हो चुकी है। रेलवे द्वारा स्टेशनों पर आधुनिक तकनीक सिग्नल प्रणाली पर आधारित स्वचलित प्लेटफार्म लाइट नियंत्रक सिस्टम लगाया गया है।
पमरे के 40 प्रमुख स्टेशनों पर कुल 96 प्लेटफार्मों पर सिग्नल प्रणाली पर आधारित स्वचलित प्लेटफार्म लाइट नियंत्रक सिस्टम लगाया गया है। इस प्रणाली के अंतर्गत जैसे ही गाड़ी प्लेटफार्म पर पहुंचेगी प्लेटफार्म की शत-प्रतिशत लाइटें चालू हो जाएंगी और गाड़ी के रुकने तक प्लेटफार्म की सभी 100 प्रतिशत लाइटें चालू रहेंगी। गाड़ी जैसे ही प्लेटफार्म को पार करेंगी वैसे ही 70 प्रतिशत लाइट बंद हो जाएंगी । यात्री सुविधा एवं सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक 30 प्रतिशत लाइटें चालू रहेंगी। इस प्रणाली को अपनाने से स्टेशनों में 36 लाख किलोवाट यूनिट से अधिक बिजली की बचत हुई है। पमरे के तीनों मंडलों जबलपुर, भोपाल एवं कोटा के प्रमुख स्टेशनों पर स्वचलित प्लेटफार्म लाइट नियंत्रण प्रणाली उपलब्ध है।
जबलपुर मंडल के 13 स्टेशन शामिल :- जबलपुर के 13 स्टेशनों पर जबलपुर, मदन महल, नरसिंहपुर, मैहर, सतना, सागर, गाडरवारा, श्रीधाम, कटनी मुड़वारा, कटनी, दमोह, रीवा सहित कुल 34 प्लेटफार्मों में स्वचलित प्लेटफार्म लाइट नियंत्रक सिस्टम लगाया गया है।
भोपाल मंडल के 12 स्टेशन :- भोपाल के 12 स्टेशनों पर भोपाल, गुना, हरदा, होशंगाबाद, विदिशा, शिवपुरी, बीना, संत हिरदा रामनगर, गंजबासौदा, सांची, अशोक नगर,ब्यावरा राजगढ़ सहित कुल 33 प्लेटफार्मों में स्वचलित प्लेटफार्म लाईट नियंत्रक सिस्टम लगाया गया है।
कोटा मंडल के 15 स्टेशन :- कोटा के 15 स्टेशनों पर शामगढ़, रामगंज मंडी, भवानी मंडी, सवाई माधोपुर, सालपुरा, बारां, इन्द्ररगढ़, श्री महावीर जी, लाखेरी, बयाना, विक्रम आलोट, चौमहला, सुवासरा, मोरक, छबड़ा गुगोर सहित कुल 29 प्लेटफार्मों में स्वचलित प्लेटफार्म लाइट नियंत्रक सिस्टम लगाया गया है।
स्वचलित प्लेटफार्म लाइट नियंत्रक सिग्नल प्रणाली के ये हैं फायदे
- इस प्रणाली से ऊर्जा की बचत होती है।
- रोशनी नियंत्रण के माध्यम से बिजली खर्च को काम करता है।
- प्लेटफार्म लाइटिंग को सिग्नल सप्लाई से नियंत्रित करने के लिए यह प्रणाली बहुत ही विश्वसनीय है।
- पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा सरंक्षण के लिए बहुत काफी कारगर सिद्ध हुआ है। पश्चिम मध्य रेल ने साल भर में लगभग 36 लाख किलोवाट से अधिक ऊर्जा की बचत की है।