
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की एकलपीठ ने दुष्कर्म और गर्भपात से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि प्रजनन व्यक्तिगत अधिकार है, जिस पर कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रजनन स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने सुनाया। मामला पन्ना जिले की एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता से संबंधित था, जो गर्भवती हो गई थी। जिला न्यायालय ने इस संबंध में हाई कोर्ट को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा था।
क्या है मामला
हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे, लेकिन पीड़िता ने जांच कराने से इन्कार कर दिया। इसके बाद मेडिकल बोर्ड ने उन्हें गर्भपात और बच्चे को जन्म देने से जुड़े सभी चिकित्सकीय पहलुओं से अवगत कराया। इसके बावजूद पीड़िता और उसके माता-पिता ने गर्भपात से इन्कार कर दिया।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि "गर्भपात के अधिकार की निजता और गरिमा मौलिक अधिकारों में निहित है। इसकी दृढ़ता से रक्षा की जानी चाहिए। यौन और प्रजनन संबंधी निर्णय पूरी तरह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विषय हैं।"
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने यह भी कहा कि "गर्भवती की सहमति सर्वोपरि है। अगर वह गर्भपात नहीं चाहती, तो न्यायालय उस पर दबाव नहीं बना सकता।"हाई कोर्ट के इस निर्णय को महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा से जुड़ी एक अहम टिप्पणी माना जा रहा है, जो आने वाले समान मामलों में मिसाल साबित हो सकती है।