नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। भावांतर योजना में जिले में बनाए गए तीन सेंटरों पर तीन दिन में महज 19 किसानों ने ही पंजीयन कराया है, जबकि सोयाबीन की बुवाई करने वाले किसानों की संख्या 450 से अधिक है। किसान योजना में पंजीयन कराने में कम रुचि ले रहे हैं। इसके पीछे बाजार की वजहें बताई जा रही हैं।
प्रदेश सरकार ने सोयाबीन का समर्थन मूल्य 5328 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है, जबकि किसानों को उम्मीद है कि बाजार मूल्य छह हजार के आसपास जा सकता है। इसलिए भावांतर योजना में पंजीयन कराने में किसान फिलहाल अरुचि दिखा रहे हैं।
क्या होगा भावांतर योजना में
किसान यदि कृषि उपज मंडी में अपनी सोयाबीन बेचते हैं और उस दिन दर समर्थन मूल्य से कम रहती है तो किसानों को जिस मूल्य पर फसल बेची है और समर्थन मूल्य के अंतर को सरकार किसानों को भुगतान करेगी।
क्यों दिखा रहे किसान अरुचि
अंचल में तिलहनी फसलों में सरसों भी होती है। सरसों का सरकारी समर्थन मूल्य 6200 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि वर्तमान में सरसों 6738 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रही है। यानी 500 रुपये से अधिक कीमत पर बिक रही है। इसलिए किसानों को उम्मीद है कि सोयाबीन की फसल भी समर्थन मूल्य से अधिक पर बिकेगी। इसलिए किसान पंजीयन केंद्रों पर कम पहुंच रहे हैं। हालांकि कृषि विभाग के अफसरों को उम्मीद है कि अभी अंतिम तारीख दूर है। अंतिम तारीख तक किसान पंजीयन करा लेंगे।
जिले में बढ़ रहा है सोयाबीन का रकबा
अंचल में सोयाबीन प्रमुख फसल नहीं है। केवल एक ही ब्लाक के किसान फिलहाल इसे कर रहे हैं। घाटीगांव ब्लाक के 450 किसानों ने इस बार 715 हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल बोई है। हालांकि यह रकबा पिछले सालों में कम था, लेकिन सोयाबीन की कीमत ठीक मिलने से किसान इस फसल की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
भाव बढ़ने की संभावित वजह
चीन और यूरोप में पशु चारा उद्योग और खाद्य उद्योग से सोयाबीन की मांग बढ़ने से भारतीय सोयाबीन के दाम में बढ़ोतरी हो सकती है। सरकारी संस्था नाफेड के सोयाबीन की बिकवाली रोकने से बाजार में सोयाबीन की आपूर्ति पर असर पड़ता है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। यदि घरेलू तेल मिलों की मांग बढ़ती है, तो इससे सोयाबीन की कीमतों में सुधार हो सकता है।