अनुकृति श्रीवास्तव, जबलपुर। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जननेता, साहित्यकार, ओजस्वी वक्ता, शिक्षाविद, पत्रकार व मूल्य सापेक्ष राजनीति से जुड़ा व्यक्तित्व पद्मश्री पंडित भवानी प्रसाद तिवारी। कहते हैं कि एक समय ऐसा था कि यदि कोई जबलपुर की बात करता था तो लोग कहते कि अच्छा पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का शहर। अपने व्यक्तित्व से शहर की पहचान बन चुके पंडित भवानी प्रसाद तिवारी के 109वें जन्मदिन पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें इतिहासविद डॉ. आनंद सिंह राणा से मिली जानकारी के अनुसार।
Padmashree Pandit Bhavani Prasad Tiwari's Birthday: 12 फरवरी, 1912 में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का जन्म जरूर सागर में हुआ लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा से लेकर उनकी कर्मभूमि, साहित्य रचना का स्थल जबलपुर ही रहा। वर्ष 1930 से ही भवानी प्रसाद तिवारी राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए थे। 18 वर्ष की कम उम्र में ही जेल यात्रा की और इसके बाद कई बार राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संघर्ष करते हुए पुन: जेल गए। भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत शहर की तिलक भूमि तलैया में हुए सिग्नल कोर के विद्रोह की अगुवाई के साथ ही शहर में होने वाले प्रत्येक आंदोलन की अगुवाई भवानी प्रसाद तिवारी ने ही की। त्रिपुरी अधिवेशन के दौरान हितकारिणी स्कूल में शिक्षक की नौकरी छोड़ अधिवेशन में सक्रिय भूमिका निभाई। तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में शामिल रहे।
अपने सम्मोहित करने वाले व्यक्तित्व के कारण ही पंडित भवानी प्रसाद तिवारी के नाम कई ऐसे कीर्तिमान दर्ज हैं जो उस समय सामान्य बात नहीं थी। वर्ष 1936 से लेकर 1947 तक लगातार नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। इस पद से ग्यारह वर्षों तक उन्हें कोई हटा नहीं सका। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1964 से दो बार राज्यसभा सांसद रहे। शहर से सात बार महापौर होने का गौरव भी पंडित भवानी प्रसाद तिवारी के ही नाम हैं। वर्ष 1952 में पहली बार महापौर बनें। फिर 1953 में पुन: महापौर चुने गए। इसके बाद एक साल के अंतराल के बाद 1955, 56, 57, 58 में शहर के महापौर रहे। इसके बाद दो सालों के अंतराल के बाद वर्ष 1961 में फिर महापौर चुने गए।
स्वतंत्रता आंदोलन, राजनीतिक सक्रियता के साथ ही साहित्य रचना के लिए भी पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का नाम अवस्मिरणीय है। छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा के स्वरूप को परी तरह आत्मसात न कर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को अपने काव्य-कथ्य में संजोई अभिव्यक्ति द्वारा रचना के सृजन में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का नाम प्रमुख स्थान है। रवींद्र नाथ टैगोर की कृति गीतांजलि का हिंदी अनुवाद उनके जीवन को और भी अलंकृत कर देता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही वर्ष 1947 में 'प्रहरी समाचार पत्र का संपादन उनके भीतर के पत्रकार का परिचय भी कराता है। वर्ष 1972 में पद्मश्री का दिया जाना विभिन्न् क्षेत्रों में उनकी सक्रिय भूमिका का प्रमाण है।
बात को सहज ही कहने के अपने निराले अंदाज के चमत्कारी व्यक्तित्व पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का निधन 13 दिसंबर, 1977 में जबलपुर में ही हुआ।