नईदुनिया प्रतिनिधि, झाबुआ। घरवालों से नाराज हूं। इसलिए मैं रेल में बैठकर अपना घर छोड़कर आ गया था । मुझे मुंबई जाना था। मुझे फिल्म स्टार सलमान खान बहुत पसंद हैं। उसी से मुंबई जाकर मिलना था। यह कहना था राजस्थान के उस नाबालिग बच्चे का जो बिना टिकट के रेल में शनिवार को यात्रा कर रहा था। उसके पास दो सौ - तीन सौ रुपए से ज्यादा राशि भी नहीं थी ।
बाल कल्याण समिति ने दिखाई तत्परता
जब काउंसलिंग में उसे बाल कल्याण समिति के सदस्य प्रदीप ओएल जैन ने समझाया कि वह कितनी बड़ी मुसीबत मोल ले रहा था तो बच्चे की समझ में आ गया। रविवार का अवकाश होने के बावजूद समिति ने तत्परता दिखाई । मात्र 24 घंटे में ही नाबालिग को उसके पिता को सौप दिया गया। हालांकि नाबालिग बालकों के लिए बाल गृह की कमी भी एक बार फिर उभरी।
यह है कहानी
अब रात में कैसे रखें ?
झाबुआ लाने के बाद समिति के सामने समस्या यह रही कि नाबालिग बालक को रात में कैसे रखें ? वजह यह है कि नाबालिग लड़कियों के लिए झाबुआ में वन स्टॉप सेंटर है मगर नाबालिग लड़कों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में समिति ने एक स्थान को फिट फेसेलिटी डिक्लेयर करते हुए बालक को रखने की अस्थाई व्यवस्था की ।
अवकाश में भी कार्य
रविवार का अवकाश होने के बावजूद समिति कार्य में लगी रही । बालक से मोबाइल नंबर लेकर उसके पिता को सूचना पहले ही दी जा चुकी थी । रविवार को सुबह दस बजे उसके पिता आ गए। दोपहर बारह बजते - बजते बालक को उसके पिता को तमाम कानूनी प्रक्रिया करते हुए सौप दिया गया। मात्र 24 घंटो में बालक को सुरक्षित उसके पिता को सौंपने में रेलवे के मायाराम गुर्जर,समिति के जैन,विजय चौहान,बेला कटलाना,सामाजिक कार्यकर्ता जिम्मी निर्मल आदि की भूमिका सराहनीय रही।
कुक्षी - इंदौर में व्यवस्था
नाबालिग बालकों को रखने के लिए झाबुआ में मांग के बावजूद अभी तक कोई व्यवस्था नहीं है। कुक्षी व इंदौर में ही यह व्यवस्था है। ऐसे में नाबालिग लड़कों को रखने में बहुत दिक्कत आती है। यदि कुक्षी या इंदौर के बाल गृह भेजा जाता है तो व्यवहारिक कठिनाइयां बहुत अधिक बढ़ जाती हैं। ऐसे में झाबुआ में ही बाल गृह खुलना चाहिए।