
खरगोन से विवेक वर्धन श्रीवास्तव। Mahseer Fish बेहद खूबसूरत और 'टाइगर ऑफ वाटर' कही जाने वाली महाशीर मछली भले ही मध्य प्रदेश की राज्य मछली हो लेकिन यहां अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए तड़प रही है। महाशीर (टोर-टोर) मध्य प्रदेश की नर्मदा, तवा जैसी कई साफ पानी की नदियों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी लेकिन 50 सालों में इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई है। ताजा अध्ययन में विशेषज्ञों ने चिंता जताते हुए बताया है कि मध्य प्रदेश की नदियों में यह मछली मात्र दो या तीन प्रतिशत ही मौजूद है। विश्व में महाशीर की 47 प्रजातियां हैं इसमें भारत में 15 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भी कुछ विलुप्त प्राय: हो चुकी हैं।
महाशीर मछलियां (Mahseer Fish) जलीय जैव विविधता संतुलन बनाने की सबसे अधिक क्षमता रखती है। महाशीर नर्मदा नदी में सबसे अधिक देखी जाती हैं। पर्यावरणविद्, प्राणी शास्त्री, विशेषज्ञ सहित वन विभाग इस मछली को बचाने में जुटे हैं। खरगोन जिले के बड़वाह वन मंडल में तालाबों में कृत्रिम और प्राकृतिक प्रजनन का माहौल देकर महाशीर को बचाने की कोशिश जारी है। करीब पांच साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महाशीर मछली को राज्य मछली का दर्जा दिया था।
प्राकृतिक प्रजनन में सफलता से बढ़ी उम्मीद : भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल की प्रोफेसर व रिसोर्स पर्सन प्राणी शास्त्री डॉ. श्रीपर्णा राय सक्सेना ने बताया कि बड़वाह वन मंडल क्षेत्र के दो तालाबों में महाशीर संरक्षण को लेकर किए गए प्रयोग काफी हद तक सफल हुए। यहां पहले उनका कृत्रिम प्रजनन करवाया गया। इसके बाद प्राकृतिक प्रजनन का माहौल भी दिया गया। परिणाम यह रहा कि यहां महाशीर के हजारों अंडों में से बच्चे निकले हैं। डॉ. राय के अनुसार करीब दो माह बाद इन्हें नर्मदा नदी के मुख्य प्रवाह में छोड़ा जाएगा। गौरतलब है कि भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के निदेशक डॉ. पंकज श्रीवास्तव ने व्यक्तिगत रुचि लेकर इस जिले में महाशीर के संरक्षण को लेकर प्रयोग किए। उन्होंने अपने शोध में पाया कि बिग डते पर्यावरण और नर्मदा नदी के प्रवाह में आई कमी के कारण महाशीर को प्रजनन के लिए पर्याप्त माहौल नहीं मिल सका। इसी वजह से महाशीर की संख्या लगातार कम होती गई।
महेश्वर किले की दीवारों पर अंकित है महाशीर : महाशीर मछली का इतिहास अनूठे ढंग से दर्ज है। कालगणना के अनुसार नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के होलकर किले की दीवारों पर इस महाशीर मछली की आकृति को बड़ी खूबसूरती से उकेरा गया है। प्राणी शास्त्री और विशेषज्ञों का मानना है कि इन कलाकृतियों से साबित होता है कि लगभग 2500 साल पहले नर्मदा नदी में महाशीर प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी। परंतु समय के साथ बिगड़ते पर्यावरण और जलीय तंत्र में असंतुलन का दुष्परिणाम यह रहा कि पर्यावरण मित्र महाशीर की प्रचुरता धीरे-धीरे खत्म हो गई। नर्मदा नदी और पर्यावरण पर रचनाएं लिखने वाले गीतकार हरीश दुबे ने बताया कि मछुआरे महाशीर को नथ पहना देते हैं और पूजा करते हैं। इससे साबित होता है कि जलीय तंत्र में इसका विशेष महत्व है। फिशरीज रिजरवॉयर बेंगलुरू के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीआर देसाई के अनुसार सन् 1958 से 1966 के बीच होशंगाबाद स्थित शोध केंद्र में महाशीर प्रजाति का अध्ययन किया गया। इस दौरान नर्मदा व तवा नदी में यह लगभग 28 प्रतिशत यह पाई गई थी।
जागरूकता के लिए कई प्रयास
डॉ. श्रीपर्णा राय ने बताया कि क्षेत्र में महाशीर के संरक्षण और पर्यावरण सुधार के लिए नर्मदा किनारे बसे साधु-संतों को भी जोड़ा गया है। मछली तेज प्रवाह के दौरान ही प्रजनन करती है। रेत के अवैध खनन पहाड़ों की कटाई से जहां नर्मदा के किनारों का सौंदर्य प्रभावित हुआ है वहीं महाशीर के अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
जिले में नर्मदा नदी व अन्य सहायक नदियों में समय-समय पर मछली के शिकार पर प्रतिबंध लगाया जाता है। महाशीर संरक्षण को लेकर खरगोन जिले में सकारात्मक प्रयास किए जा रहे हैं। शोधकर्ताओं को पूरा सहयोग दिया जाएगा। - गोपालचंद्र डाड, कलेक्टर, खरगोन