नईदुनिया प्रतिनिधि, करही। देश के कई शहरों में आवारा कुत्तों का कहर देखने को मिला है। तीन अलग-अलग राज्यों- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से सामने आए खौफनाक वीडियो रूह कंपा देने वाले हैं। नगर में श्वानों का आतंक बढ़ गया है। शुक्रवार की शाम को भी 10 श्वानों के झुंड ने एक 10 वर्षीय बालिका के ऊपर हमला बोल दिया। वहीं नगर परिषद अभी तक भी नींद में सोई हुई है।
जानकारी अनुसार नगर के डाक बंगले (विश्राम गृह) में कार्यरत हीरालाल भाई की 10 वर्षीय पोती शाम को अपने घर से किराना का सामान लेने के लिए बाजार जा रही थी। तभी डाक बंगले के सामने पहले तो चार श्वानों ने उसे गिरा दिया। फिर बाकी के छह श्वानों ने भी बच्ची के ऊपर हमला कर दिया। वहीं स्थित दुकानदारों और राहगीरों ने तत्काल उन्हें भगाया। अन्यथा श्वान बच्ची की अधिक घायल कर देते। घटना के कारण बच्ची बुरी तरह घबरा गई थी।
इस तरह की घटना आए दिन नगर के घटती रहती है। आये दिन दो सांड और श्वान से परेशान होते रहते है। लोग कई बार घायल भी हो जाते है, लेकिन नगर परिषद के अधिकारियों कर्मचारियों के साथ अध्यक्ष व पार्षदों ने भी आज तक इस मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया। परिषद शायद कोई बड़ी घटना घटने के इंतजार कर रही है।
नगर में पिछले कुछ महीनों में डॉग बाइट की अनेक घटनाएं हो चुकी है। जब कोई मामला हाई लाइट हो जाता है। उसके बाद नगरीय प्रशासन कुछ हरकत में आता है, कुछ गतिविधियां दिखाकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। गर्मी बढ़ने से श्वानों चिड़चिड़े होकर लोगों को काटना शुरू कर देते है। यह सिलसिला चलता रहता है। स्वास्थ्य विभाग की माने तो जुलाई अगस्त के महीने में ही आंकड़ा पचास को पार कर चुका है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मंडलेश्वर के डॉ. स्वप्निल श्रीवास्तव ने बताया जुलाई में 48 और 18 अगस्त तक 26 प्रकरण हो चुके है। प्रतिदिन दो-चार मामले आ ही रहे है। नगर परिषद द्वारा गत माह कुत्ते पकड़ने का अभियान चलाकर लगभग 120 कुत्ते पकड़कर नगर सीमा से बाहर छोड़े गए। उनको टीका लगवाने और नसबंदी जैसी कोई योजना परिषद के पास नहीं है।
गत दिनों एक रिटायर्ड रेंजर को श्वानों ने घायल कर दिया। उन्हें जिला अस्पताल रेफर करना पड़ा था। कई बच्चे भी श्वानों के काटने से घायल हो चुके हैं। पालतू जानवर भी इन श्वानों का शिकार बनते रहे है। लेकिन प्रशासन इनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।
पशु प्रेमी संस्था थैंक यू नेचर के रेस्क्यू स्पेशलिस्ट अरुण केवट का कहना है कि आज विदेशी नस्ल के श्वानों पाले जा रहे है, जिन पर होने वाले खर्च से कई स्ट्रीट डॉग पाले जा सकते है। हम बाहर श्वान के लिए रोटी नहीं डालते पहले घर की झूठन से श्वान बिल्ली पल जाया करते थे। अब जूठन कचरा गाड़ी में डाल दी जाती है। इसलिए श्वान भुखमरी का शिकार होने से पहले खुद शिकार करने लगे है वे गाय भैंस के छोटे बछड़ों और बकरी के मेमनों को शिकार बनाने लगे है। इसके लिए वे समूह बनाकर हमला करते है।
गाय और श्वानों की रोटी हर घर में बनाना शुरू करना चाहिए। परिषद उनको गलत तरीके से पकड़कर गांव से बाहर छोड़ देती है वे दूसरे नगर में जाकर ज्यादा हिंसक हो जाते है। यह समस्या का हल नहीं है। इसके लिए नगर परिषद को वन विभाग पशु चिकित्सालय विभाग के साथ मिलकर योजना बनानी चाहिए, जिसमें पहले पागल और घायल श्वानों को चिह्नित कर एक शेल्टर हाउस में रखकर उनका उपचार किया जाए। एंटी रेबीज के साथ ही नसबंदी की जा सकती है।
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मंडलेश्वर के शासकीय पशु चिकित्सालय के सहायक शल्यज्ञ डॉ. बीएल पटेल ने बताया कि आम तौर पर मई जून में जब गर्मी बढ़ती है और जल स्त्रोत सुख जाते है। तब जंगलों से लोमड़ी सियार जैसे जानवर गांव की तरफ आते है और उनके संपर्क में आने से भी श्वान चिड़चिड़े पागल हो जाते है। जितने भी रीढ़ वाले जीव है। उनमें रेबीज हो सकता है।
ऐसे लोग जो पशु चिकित्सा विभाग, झू, अभयारण्य वन विभाग में काम करते है उनको हर साल एक टीका अवश्य लगवाना चाहिए। पालतू पशुओं को भी टीका लगवाना चाहिए। यदि पशु प्रेमी चाहे तो स्ट्रीट डॉग को भी टीका लगवाने के लिए आ सकते है।