नईदुनिया प्रतिनिधि, मंदसौर। अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ की मूर्ति के क्षरण और दरारों का मुद्दा पहली बार नहीं उठा है। पहले भी दूध, दही व निरंतर जलाभिषेक से मूर्ति के क्षरण को लेकर आवाज उठी थी और तब सुबह 11 बजे के बाद से जलाभिषेक पर भी रोक लगा दी गई थी, वहीं 10 साल पहले भी मूर्ति पर वज्र लेप हो चुका है।
मंदिर प्रबंध समिति कुछ सालों में मंदिर के विकास पर लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है, लेकिन मूर्ति का क्षरण नहीं रुक पा रहा हैं। अभी हाल ही में पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने एक बार फिर क्षरण का मुद्दा उठाकर मामले को गरमा दिया हैं। अष्टमुखी मूर्ति के नीचे के चार मुख में ज्यादा क्षरण होता रहा है। इस बार ऊपर के मुख में दरार का मामला उठा हैं।
हालांकि मुख्य पुजारी सहित अधिकांश लोग कह रहे हैं कि यह दरार मूर्ति पर शुरू से ही है। 2008-09 में तत्कालीन कलेक्टर डा. जीके सारस्वत ने औरंगाबाद की कंपनी से मूर्ति पर वज्र लेप कराया था, लेकिन वह ज्यादा समय नहीं चल पाया था। 2013 में कलेक्टर शशांक मिश्र ने सुबह 11 बजे बाद जलाभिषेक पर प्रतिबंध लगाया था, जो आज तक लागू हैं।
दिसंबर 2016 में नासिक की कंपनी ने मूर्ति के क्षरण को रोकने के लिए वज्र लेप का प्रजेंटेशन दिया था। कंपनी ने 50 साल तक मूर्ति का क्षरण नहीं होने की गारंटी लेने की भी बात कही थी लेकिन जिम्मेदार कोई निर्णय नहीं ले सके थे। भूगर्भ विशेषज्ञ डा. विनिता कुलश्रेष्ठ ने बताया कि भगवान पशुपतिनाथ की मूर्ति हार्ड फिलिशियस सेंड स्टोन (बालू काश्म) से बनी है।
सफेद धारियां क्वार्ड व केलसाइड से मिलकर बनी हैं। जब इस पर पानी गिरता है तो वह क्षरित होती हैं। पानी जितना ज्यादा एसिडिक होगा मूर्ति का क्षरण उतना ज्यादा होगा। वहीं, कलेक्टर व मंदिर प्रबंध समिति अध्यक्ष दिलीप कुमार यादव ने कहा कि मूर्ति क्षरण को रोकने के लिए हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं। जलाभिषेक पर सुबह 11 बजे से रोक लगने के बाद से मूर्ति का क्षरण रुका भी है।