शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दंड संन्यास के 64 वर्ष
ज्योतिष एवं द्वारकापीठ के जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के गुरूवार को दंड संन्यास दीक्षा के 64 वर्ष पूर्ण हो गए।
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Publish Date: Thu, 01 Jan 2015 10:58:35 PM (IST)
Updated Date: Fri, 02 Jan 2015 03:20:09 PM (IST)

नरसिंहपुर। ज्योतिष एवं द्वारकापीठ के जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के गुरूवार को दंड संन्यास दीक्षा के 64 वर्ष पूर्ण हो गए। गुरूवार को परमहंसी गंगा आश्रम में इस तारतम्य में विधि कार्यक्रम, पूजन-अर्चन कार्यक्रम आयोजित किया गया।
परमहंसी गंगा आश्रम में पौष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दंड संन्यास के 64 वर्ष पूर्ण होने पर पूजन कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसी तिथि पर सन् 1950 में ज्योतिषपीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वतीजी के द्वारा करपात्रीजी महाराज के सान्निध्य में कलकत्ता में दंड दीक्षा दी गई थी।
दंड दीक्षा के अनुसार भारत में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी सबसे वरिष्ठतम दंड सन्यासियों में से प्रथम हैं। वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी हैं, साथ ही दो पीठों के शंकराचार्य। गुरूवार को परमहंसी गंगा आश्रम में ब्रह्माचारी सुबुद्घानंद सरस्वती, ब्रह्माचारी अचलानंद सरस्वती, ब्रह्माचारी ध्यानानंद, ब्रह्माचारी विद्यानंद, ब्रह्माचारी अमृतानंदजी, ज्योतिषपीठ के शास्त्री रविशंकरजी एवं छोटे शास्त्री समेत अनेक ब्रह्माचारियों ने पूजन-अर्चन करते हुए महाराजश्री से आशीर्वाद लिया।
दंड संन्यास का महत्व
ब्रह्मचारी निजानंद समेत महाराजश्री की शिष्या मंजुला राव ने अध्यात्म और संन्यास दीक्षा पर दंड के महत्व को बतलाया। दंड दीक्षा एक कठिन साधना है, दंड ग्रहण करने वाला संन्यासी नारायण स्वरूप माना जाता है, कई वस्तुओं का त्याग करना पड़ता है।