नीमच (नईदुनिया प्रतिनिधि)। गुरु और भगवान के प्रति समर्पण भक्ति और आसक्ति, यह सब जाति-पंथ को नहीं देखती। गच्छाधिपति दौलतसागर सूरीश्वरजी महाराज ने यह सिद्ध कर दिखाया।
यह बात साध्वी हितदर्शना श्रीजी ने महाराजजी की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित गौरव गुणानुवाद धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि आज से 100 वर्ष पूर्व उनका जन्म पाटीदार कुल में गांव जैतपुर में साना (गुजरात) में हुआ था। उनका नाम शंकर पाटीदार था वे 14 वर्ष की आयु में अहमदाबाद में जैन धर्म गुरुओं के संपर्क में आए और संसार की नश्वरता जीवन की क्षणभंगुर कर्मों की भयावहता के बोध ने उन्हें संयम जीवन की ओर प्रेरित किया। साध्वी मसा ने कहा कि यदि हम एक वर्ष में 101 सामायिक प्रतिक्रमण नवकारसी करने का रात्रि भोज त्याग आदि के नियम का संकल्प लेंगे तो गच्छति पति से सच्चे अर्थों में जीवन में प्रेरणा ले सकेंगे। गच्छति पति की आंखों में सदैव करुणा वात्सल्य का झरना बहता है। साध्वी दिव्या नेहा श्रीजी महाराज ने कहा कि संत महंतों भक्तों फकीरों की इस पवित्र धरा पर अकबर से तुलसीदास सिकंदर से कालिदास को ज्यादा आदर देना गुरु के प्रति आदर का परिचायक है। साध्वी श्रीजी मसा ने कहा कि दौलत सागरजी महाराज सहनशील प्रवचन प्रभाव्क है। प्रेम प्रकाश जैन ने कहा कि 82 वर्ष के दीक्षा पर्याय में दौलत सागर महाराज ने सात आगम मंदिर 35 बार का सूत्र मंदिर का निर्माण कराया। महावीर जिनालय में प्रभु प्रतिमा की आंगी सजाई गई। पुष्प अर्पित कर आरती की गई। भक्ति संगीत के साथ गुरु के गुण गाए गए। इस अवसर पर धर्म प्रेमी उपस्थित रहे। इस दौरान भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट विमोचन भी अतिथियों द्वारा किया गया।
पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजन का अनुष्ठान आत्म कल्याणकारी होता है
नीमच। मिडिल स्कूल के समीप जैन भवन सभागार में श्री जैन श्वेतांबर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एवं चातुर्मास समिति द्वारा साध्वी देवेंद्र श्रीजी एवं शासन ज्योति श्रीजी मसा की निश्रा में राष्ट्र एवं समाज की सुख-शांति के लिए गच्छाधिपति दौलतसागर सूरीश्वरजी के 101 वर्ष में प्रवेश के उपलक्ष्य में पूजन पाठ धार्मिक अनुष्ठान भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर पुस्तक बाजार प्रांगण में आयोजित किया गया। इसमें श्रद्धालु भक्तों एवं समाज जनों ने उत्साह के साथ भागीदारी निभाई और पूजा में श्रीफल नैवेद्य समर्पित कर पूजा अर्चना की गई। साध्वी देवेंद्र श्रीजी मसा ने पूजन की प्रणाली की सही विधि-विधान का विस्तार से मार्गदर्शन प्रदान कर भावार्थ भी समझाया और कहा कि पूजन का फल कभी निष्फल नहीं जाता है। इसके वाचन और श्रवण से आत्मा और मन पवित्र होता है। इसका फल आत्म कल्याणकारी होता है इससे रोग ठीक होते हैं और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। पुजन से काम क्रोध से भटकते को मार्ग मिल जाता है। श्रद्धालु भक्तों ने पूजा नियम का संकल्प भी लिया। धार्मिक अनुष्ठान में मातृशक्ति रंग-बिरंगे परिधानों में सहभागी बनीं। पूजा के पाठ पर दीपक प्रज्वलित किए गए और भक्तों द्वारा श्रीफल चढ़ाकर पूजा की गई। इस अवसर पर संगीतमय मधुर कर्णप्रिय के लिए नवकार मंत्र का उच्चारण किया गया।