
नीमच (नईदुनिया प्रतिनिधि)। सुख-दुख कर्मों का फल होता है भाग्य का नहीं। खोटे कर्म से दुख मिलता है। अच्छे कर्म से सुख मिलता है। दुख से कर्म का असर होता है। संसार का परिचय दुख ही दुख देता है। मान अपमान दोनों परिस्थिति में मनुष्य को स्थिर रहना चाहिए। पांच इंद्रियों से मिलने वाला विषपान बंद होगा, तभी मुक्ति का मार्ग मिलेगा। पांच इंद्रियों के भोग मनुष्य को मीठे लगते हैं, जबकि यह जहर है। भोगों से अनंत कर्मों का पाप बढ़ता है।
यह बात प्रज्ञा महर्षि ज्ञाननिधि पं उदय मुनि महाराज ने कही। वे वर्धमान जैन स्थानक भवन में शनिवार सुबह धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मानव जीवन क्षणभंगुर है, वो कभी भी मिट सकता है, इसलिए सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए, बुरे कर्मों से सदैव बचना चाहिए। पुण्य के पुरुषार्थ से लाभ मिलता है। मंत्र जाप से सदैव प्रसन्नाता मिलती है। सुख आता है तो आनंद लेना चाहिए दुख आता है तो उसे मिटाने के लिए मनुष्य कितने ही कर्म करता है, जबकि दुख को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए तभी दुख सरलता से कम हो जाता है।
मनुष्य ने जिस प्रकार कर्म को बांधा है, उसी प्रकार कर्म को क्षय करना पड़ता है। अपने आप को जानना होगा, तभी मोक्ष मार्ग मिल सकता है। शरीर भाव मिटा आत्मा का भाव जगाएं तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है। लोगों का लक्ष्य धन वृद्घि के लिए है तो मोक्ष कैसे हो सकता है। ज्ञान तप शील पर ध्यान नहीं है सदाचार का पालन करें तभी मोक्ष हो सकता है। सुख साधन को छोड़ संयम जीवन अपनाना चाहिए। राजसी वैभव के भोग का त्याग करेंगे तो ही मोक्ष मिलेगा।मोह के त्याग बिना अपना कल्याण नहीं हो सकता है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ रजिस्टर्ड ट्रस्ट जैन कालोनी नीमच के तत्वावधान में वीरपार रोड स्थित जैन स्थानक भवन में रविवार सुबह 9ः15 से 10ः15 बजे तक प्रज्ञा महर्षि ज्ञान निधि पंडितजी महाराज के विशेष प्रवचन सभी धर्म प्रेमी बंधु समय पर उपस्थित होकर धर्म ज्ञान का पुण्य लाभअर्जित करें।