खुरई (नवदुनिया न्यूज)। महावीर वार्ड स्थित प्राचीन जैन मंदिर में विराजमान मुनि नीरजसागर महाराज ने उत्तम आकिंचन्य धर्म पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि धर्माराधना का नौवां दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म की साधना का दिन है। प्रथम उत्तम क्षमा के दिन से यात्रा प्रारंभ कर क्षमा का बीज मार्दव की उर्वरा भूमि में अंकुरित होकर सीधा चला। निर्लोभता के भाव से सत्य को छूते हुए, संयम परिणाम रखकर बाहर की सर्दी-गर्मी आदि सहन करते हुए, विकारी भावों का विसर्जन कर आज आकिंचन्य धर्म की आराधना में संलग्न हुए हैं। यही हमें अपनी मंजिल उत्तम ब्रह्मचर्य तक ले जाएगा। आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य दस धर्मों के सारभूत हैं, क्योंकि ये चारों गतियों के दुखों से छुड़ाकर मोक्ष सुख में पहुंचाते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि जैसे उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौचधर्मों की विरोधी क्रमशः क्रोध, मान, माया, लोभ कषायें हैं, वैसे ही आकिंचन्य धर्म का विरोधी परिग्रह को कहा गया है। परिग्रह के अभाव में ही आत्मा में आकिंचन्य धर्म प्रकट होता है। आकिंचन्य धर्मी के परिग्रह का पूर्ण अभाव होता है, ऐसे उत्तम आकिंचन्य धर्मधारी नग्न दिगम्बर वीतरागी सन्त होते हैं। मुनिराज पर्वत पर नग्न मुद्रा में खड़े हैं। ये मूर्च्छारहित, ममता रहित, वीतरागी निर्ग्रन्थ पूर्णतः निर्भय और निश्चिंत हैं। इसी से सभी के द्वारा पूज्य हैं, वन्दनीय हैं तभी तो सुर और असुर भी इनके चरणों में झुकते हैं। परिग्रह आकिंचन्य धर्म का प्रबल विरोधी है। अशोक शाकाहार ने बताया कि पर्यूषण पर्व के समापन पर उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म पर मुनि संघ के द्वारा प्रवचन आयोजित किये जायेंगे। दोपहर 2 बजे नवीन जैन मंदिर एवं साढ़े तीन बजे प्राचीन जैन मंदिर में। वार्षिक महामहोत्सव पर श्रीजी का अभिषेक संपन्ना होगा एवं विद्वानों, त्यागीव्रतियों, दस उपवास आदि करने वालों का सम्मान किया जायेगा।
आकिंचन्य का अर्थ है जिसके भीतर, बाहर कुछ भी नहीं
देवरीकला। मुनि सुदत्तसागर ने आकिंचन्य धर्म पर कहा कि इसका अर्थ है जिसके भीतर बाहर दोनों जगह कुछ भी नहीं है। यानी आत्मा के अलावा कुछ भी अपना नहीं है। बस आत्मा ही मेरी है। पदार्थ के प्रति विरक्ति की भावना ही आकिंचन्य धर्म है। जहां पदार्थ के प्रति अहम का भाव समाप्त हुआ वहीं अर्हम प्रकट हो जाता है। जो अपना नहीं है उसे बिना खेद के छोड़ देना। पदार्थ के पीछे दौड़ना मौत है और परमार्थ को पाने की साधना ही मोक्ष है हम भीतर के दृष्टा को देखें उसे पहचान लेंगे तो सहज आकिंचन्य धर्म प्रकाश हो जाएगा। क्षुल्लक मुनि चन्द्रदत्तसागर ने कहा कि संसार में नौ ग्रह हैं। ये बलवान नहीं इनसे बचने की चेष्टा करो या नही करो लेकिन सबसे बड़ा ग्रह परिग्रह है इनसे बचो।