
नईदुनिया प्रतिनिधि, सतना। धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आस्था की प्रतीक मां मंदाकिनी नदी एक बार फिर अवैध उत्खनन की भेंट चढ़ गई। मोहकमगढ़ पुल के नीचे भारी मशीनों से नदी का सीना छलनी किया जा रहा था। चौंकाने वाली बात यह है कि यह उत्खनन जल संसाधन विभाग की परियोजना की आड़ में कराया जा रहा था। जानकारी के अनुसार जल संसाधन विभाग द्वारा मंदाकिनी नदी में घाट निर्माण कराया जा रहा है, जिसके लिए सीमित खनन की अनुमति ली गई थी, लेकिन पीपीएस कंपनी के ठेकेदार ने इस अनुमति की आड़ में नदी किनारे से पत्थर और मुरुम का अवैध उत्खनन शुरू कर दिया। आरोप है कि यह कार्य जल संसाधन विभाग के एसडीओ पुष्पेंद्र खरे के मौखिक निर्देश पर कराया जा रहा था।
स्थानीय लोगों की सूचना पर चित्रकूट तहसीलदार मौके पर पहुंचे। कार्रवाई के दौरान खनन में लगी पोकलैंड मशीन को जप्त कर लिया गया, लेकिन परिवहन में लगे ट्रक मौके से गायब हो गए, जिससे पूरे मामले में पहले से सूचना और संरक्षण की आशंका गहराती है। सबसे हैरान करने वाली स्थिति तब सामने आई जब प्रशासन के मौके पर पहुंचते ही संबंधित जिम्मेदारों के मोबाइल फोन बंद बताने लगे। इससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह पूरा खेल पूर्व नियोजित और विभागीय मिलीभगत से चल रहा था।
नदी से निकाली गई मिट्टी, पत्थर और मुरुम को DRI संस्था तक पहुंचाया जा रहा था। उत्खनन के लिए पोकलैंड मशीन का खुलेआम इस्तेमाल हो रहा था और ट्रकों से परिवहन किया जा रहा था।
मां मंदाकिनी केवल एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और जीवनरेखा है। इस तरह का अवैध उत्खनन न केवल पर्यावरण संतुलन को भारी नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि आने वाले समय में बाढ़, कटाव, जलस्तर गिरने और घाटों की स्थायित्व पर खतरा भी पैदा कर सकता है।
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-क्या जल संसाधन विभाग की अनुमति का दुरुपयोग किया गया?
-एसडीओ के मौखिक निर्देश पर खनन कराने की वैधानिकता क्या है?
-DRI संस्था को नदी से निकली सामग्री किस नियम के तहत दी जा रही थी?
-ट्रकों के गायब होने के पीछे किसका संरक्षण है?
-क्या केवल मशीन जब्ती से मामला दबा दिया जाएगा?