
शिवम कृष्ण त्रिपाठी, नईदुनिया, सतना। इस खरीफ सीजन की बुवाई के बाद यूरिया की मांग में भारी वृद्धि देखी जा रही है। इसका प्रमुख कारण दलहन फसलों की जगह धान की खेती के रकबे में लगातार बढ़ोतरी है। साथ ही धान को सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने से भी इसके प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। इस तरह एक तरफ धान की बढ़ती बुवाई ने यूरिया की खपत बढ़ा दी, वहीं दूसरी तरफ इस वर्ष देश में यूरिया का उत्पादन सीमित रहा और आयात की मात्रा भी हर साल घटती जा रही है।
सरकार हर वर्ष दलहन व तिलहन फसलों का रकबा बढ़ाने के लिए अनुमानित लक्ष्य तय करती है, लेकिन किसानों की रुचि गेहूं व धान की फसलों की ओर ज्यादा है। यही वजह है कि एक बोरी यूरिया के लिए किसान रात-रात भर लंबी कतारों में लगा रहता है।
केंद्रीय कृषि कल्याण एवं विकास विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में धान का क्षेत्रफल इस बार 1039.81 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जबकि पिछले वर्ष यह 1002.41 लाख हेक्टेयर था। यानी लगभग 37 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं दलहन का रकबा बहुत मामूली बढ़ा है। इस बार दलहन फसलों का कुल क्षेत्रफल 109.52 लाख हेक्टेयर रहा, जो पिछले वर्ष से केवल 1.14 लाख हेक्टेयर अधिक है। मूंग और उड़द में हल्की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन अरहर में 1.34 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज हुई है।
कृषि विभाग सतना के उपसंचालक आशीष पांडे बताते हैं कि दलहन फसलों में यूरिया की आवश्यकता बहुत कम होती है, क्योंकि वे स्वयं नाइट्रोजन का स्रोत होती हैं। इसके विपरीत धान की बुवाई और जर्मिनेशन के दौरान यूरिया की भारी मात्रा में जरूरत होती है।
वहीं कृषि विज्ञान केंद्र मझगवां के विज्ञानी डॉ. अखिलेश कुमार का कहना है कि किसानों को धान और गेहूं की जगह दलहन व तिलहन फसलों की ओर ध्यान देना चाहिए। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहेगी, बल्कि खाद की समस्या से भी राहत मिलेगी। हालांकि, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान व गेहूं की सरकारी खरीद होने से किसान इन्हीं फसलों पर निर्भर हैं।
दलहन की तरह तिलहन फसलों का रकबा भी घटा है। इस बार तिलहनों की बुवाई 178.64 लाख हेक्टेयर दर्ज हुई, जो पिछले वर्ष से 6.74 लाख हेक्टेयर कम है। सोयाबीन और मूंगफली जैसी प्रमुख तिलहन फसलों में गिरावट देखी गई है।