
नईदुनिया प्रतिनिधि शहडोल। जिले ब्यौहारी विकासखंड के पपौंध थाना क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निपनिया में प्रसव के बाद महिला को एंबुलेंस नहीं मिली तो उसे मजबूरन ट्रैक्टर में बैठकर हिचकोले खाते हुए नवजात को गोद में बैठाकर घर तक जाना पड़ा। स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही के कारण महिला को पीड़ा दायक सफर करना पड़ा।
जानकारी के अनुसार, डिलीवरी के बाद महिला को छुट्टी दे दी गई, लेकिन घंटों अस्पताल परिसर में इंतजार के बाद एंबुलेंस नहीं मिली। स्वास्थ्य विभाग की गैरजिम्मेदारी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपने नवजात के साथ ट्रैक्टर से घर लौटे। महिला के स्वजनों का कहना है कि उन्होंने बार-बार अस्पताल स्टाफ से एंबुलेंस की मांग की, लेकिन जिम्मेदार कर्मचारियों ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। किसी ने फोन मिलाने की जरूरत भी नहीं समझी।
घंटों बीत जाने के बाद जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो थके-हारकर ट्रैक्टर का इंतजाम किया और प्रसूता व नवजात को उसी में बैठाकर घर ले गए, ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई इकलौती घटना नहीं है, निपनिया स्वास्थ्य केंद्र में इस तरह की लापरवाही अक्सर सामने आती रहती है। संवेदनशील स्थिति में भी लोगों को समय पर सुविधा नहीं मिल पा रही है।
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सरकार एक ओर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती है। एंबुलेंस सेवा, जननी एक्सप्रेस जैसी योजनाएं कागजों पर तो गरीबों के लिए राहत का साधन बताई जाती हैं, लेकिन हकीकत में यह योजनाएं जरूरतमंदों को समय पर नहीं मिल रही है।
सवाल यह है कि जब प्रसूता और नवजात जैसी संवेदनशील स्थिति में भी लोगों को समय पर सुविधा नहीं मिल पा रही है, तो फिर इन योजनाओं का असली लाभ किसे मिल रहा है। यह घटना प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान लगाती है।
कागजों पर विकास की चमक दिखाने वाले अधिकारी जरा उस प्रसूता की मजबूरी देखें जो अस्पताल से घर जाने के लिए सड़क पर ट्रैक्टर में बैठने को मजबूर हुई। यह न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि स्वास्थ्य विभाग की असंवेदनहीनता का जीता-जागता सबूत भी है।
यह घटना बुधवार को सामने आई है, जो चर्चा का विषय बनी हुई है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस घटना की जांच करने की बात कर रहे हैं। यह बात हमेशा अधिकारियों के मुंह से सुनी जाती है लेकिन कार्रवाई नहीं होती जिसका नतीजा ही है कि आए दिन लापरवाही सामने आती है।