
Lok Sabha Chunav 2024 : विनोद कुमार शुक्ला, नईदुनिया शहडोल। जिन आदिवासियों को भाजपा और कांग्रेस मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही हैं,उन आदिवासियों को यह भी नहीं बता कि उनके क्षेत्र में प्रत्याशी कौन है और कब मतदान होना है।यह स्थिति शहडोल संसदीय क्षेत्र के पहाड़ों पर जंगलों के बीच रहने वाले आदिवासी समुदाय की है।आदिवास समुदाय को चुनाव की तारीख कब है, इससे कोई बहुत अधिक मतलब नहीं है। अभी तो वे महुआ की महक में डूबकर उसे समेटने में जुटे हैं। हां कोई जब उनके पास जाकर चुनाव में मतदान की बात करता है,तब वे अपनी स्थानीय भाषा में कहते हैं, कि वोट ला हम नहीं जानी, पढ़े न लढ़े जेन ला सब कोई गांव के देहें तेनला हमहूं दै देवो।
संभागीय मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर पुष्पराजगढ़ क्षेत्र तीन गांव पिपरहा,बकान और गरजनबीजा में आदिवासी समुदाय जंगलों के बीच रहता है।यहां आज भी पानी,बिजली,शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी कमी है।आज भी यहां के लोग तालाब और झिरिया का पानी पीते है और अंधेरे में रात काटने को मजबूर है। गांव के आदिवासी कहते हैं कि गांव में बिजली और पानी बहुत जरुरी है। गरजनबीजा में रहने वाली बैगा समुदाय की मंगिया बैगा कहती है हमारे पास कोई वोट मांगने नहीं आया और न ही कोई यह बताने आया कि वोट डालने जाना है। जब सब जाएंगे तो हम भी चले जाएंगे।हमें यह भी नहीं पता की चुनाव में प्रत्याशी कौन हैं।
झुलिया बाई बैगा कहती हैं कि हम झूम-झूम पानी पीथन झिरिया ले। न तालाब न आलाब। एक ठे तालाब है वही मन गांव भर के गुजर करथन,ता कारी हम। हमार गांव में बिजली और कुआं बनाना जरूरी है। तबले हम वोट देब।इसी तरह यहां के बीरभान बैगा ने कहा कि जिस दिन मतदान होगा उसी दिन पता चलेगा कि प्रत्याशी कौन है।अभी तो हम महुआ बीनने में लगे हैं और कोई वोट मांगने भी नहीं आया। पिपरहा गांव की मनिया बैगा कहती हैं कि कौन-कौन चुनाव लड रहा हमे इस बात की जानकारी नहीं है। हमारे गांव में सब कोई बैठ के तय कर लेते हैं किसको वोट देना है, उसी को हम लोग जाकर वोट दे आते हैं। हम पार्टी वालों को नहीं जानते। जिसको हमारे लोग कहेंगे हम उसको वोट देंगे।
शहडोल संसदीय क्षेत्र में होने वाले किसी भी चुनाव में आदिवासी समुदाय ही मुख्य केंद्र बिंदु होते हैं।यहां 45 प्रतिशत आदिवासी मतदाता हैंं। भाजपा हो या कांग्रेस सबकी नजर यहां के जनजातीय समुदाय पर ही होती है।देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इनसे संवाद करने दिल्ली से शहडोल आ चुके है और राहुल गांधी इनके बीच आकर महुंआ का स्वाद चखकर गए है।राहुल गांधी आदिवासी और वनवासी के बीच का फर्क भी समझाते हैं।जिन्हें मुद्दा बनाकर,जिनके विकास के दावों को लेकर वोट मांगा जा रहा है,उन आदिवासियों को यह भी नहीं पता कि उनके क्षेत्र का प्रत्याशी कौन है और कब चुनाव है।अभी तो स्थिति यह है कि शहडोल संसदीय क्षेत्र में आदिवासी मैदानी स्तर पर न तो भाजपा के दावे को समझ पा रहे हैं और ना ही कांग्रेस के प्रयास को।आदिवासी समुदाय शहडोल की पहचान है। आदिवासी शहडोल, अनूपपुर,उमरिया जिले में पाए जाते हैं।इस दृष्टि से आदिवासी यहां के मूल आदिवासी कहे जा सकते हैं।आदिवासी समुदाय ज्यादातर मजरे टोले में निवासरत हैं।इनकी बसाहट पहाडी इलाके में सबसे ज्यादा होती है। जंगलों के बीच रहना इनके मूल स्वभाव में शामिल है।
शहडोल लोकसभा क्षेत्र में सर्वाधिक आदिवासी वोटर पुष्पराजगढ में हैं। पहाड पर जंगलों के बीच बकान में रहने वाली किरोंदिया बाई बैगा कहती हैं कि वोट ला हम नहीं जानी। पानी ला साधन नहीं है। गली खोरी नहीं है। बहुत दूरी नाला से पानी लाइथे। मवेशी के लिए भी पानी नहीं है। आदमी के लिए नहाए तक का पानी नहीं मिले। अइसन मा हम केही वोट देइ कुछ समझ मा नहीं आबौ।गरजनबीजा की मंगिया कहती हैं हम एक ही नाला का पानी पीते हैं। उसे में मवेशी पानी पीते हैं और हम भी। हमारे यहां बहुत समस्याएं हैं। हमारे यहां कोई विकास नहीं गया है। रोड तक सही नहीं है। बहुत दूर से सोसाइटी आते हैं। गाडी चल नहीं पाती है। हम बहुत परेशान हैं। हमको जो समझेगा,हमारे यहां विकास लाएगा हम लोग उसी को वोट देंगे।
आदिवासी क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत बढाने और भाजपा के पक्ष में मतदान कराने के लिए आदिवासी इलाकों में संघ सक्रिय हो गया है। आरएसएस ने 22 अनुसांगिक संगठनों को घर घर जाकर संपर्क करने को कहा। इन सभी संगठनों के प्रमुखों को कहा गया कि गांव-गांव टोली बनाकर जाएं और प्रत्येक बूथ पर मतदान का प्रतिशत बढाने में मदद करें। 12 अप्रैल से टोलियों ने काम शुरु कर दिया है,लेकिन अभी पहाड़ के गांवों तक इनकी भी पहुंच नहीं हो पाई है।यहां के आदवासी अपने उपेक्षित महसूस करते है और नेताओं के संतुष्ट नहीं है।आदिवासियों को कहना है उनके नाम से राजनीति होती है,लेकिन हकीहत अलग है।जितना बताया जाता है,उतना हो नहीं रहा है।द्रुगम क्षेत्राें में अभी कुछ नहीं हो पा रहा है।इसके बावजूद आदिवासी अपने जंगली जीवन में मस्त है और सबकुछ भगवान पर छोड़ रहे हैं।
शहडोल संसदीय क्षेत्र में चार जिलों शहडोल,अनूपपुर,उमरिया और कटनी की आठ विधानसभाएं शामिल है।सात आदिवासी वाहुल्य सीटें है्,एक सामान्य है। एक पर कांग्रेस है, बाकी पर भाजपा के विधायक है।लोकसभा के दस प्रत्यासियों में आठ अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के है। दो बड़े दल भाजपा-कांग्रेस जिनके बीच हमेशा से मुकालबा होता आ रहा है,उनके प्रत्याशी पुष्पराजगढ़ के ही है। इतना ही नहीं अधिकतर सांसद भी इसी क्षेत्र से बने हैं,इसके बाद भी पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के पहाड़ो के बीच रहने वाले आदिवासी बिजली,पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए परेसान है।2019 के चुनाव में भाजपा से हिमांद्री सिंह सांसद बनी थी।इस बार भी वहीं मैदान में हैं,जबकि कांग्रेस ने तीन बार के विधायक फु़ंदेलाल सिंह को मैदान में उतारा है।ये दोनो पुष्पराजगढ़ के ही है,लेकिन इन्होंने अपने गृह ग्राम के आदिवासियों का भी अपेक्षित विकास नहीं करा पाए।