संतोष दशेरिया, नईदुनिया। फसलों में रसायन के छिड़काव ने मिट्टी को मानो जहर बना दिया है। इसी माटी में उपजा अनाज खाने से लोगों को कैंसर सहित अन्य जानलेवा बीमारियां हो रही हैं। इससे चिंतित पूरा जमाना है, लेकिन इसमें बदलाव का ठोस उपाय बहुत कम लोग कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में एक किसान हैं, जिन्होंने ऐसा करने का बीड़ा उठाया। वह भी यह तब करने को विवश हुए, जब रासायनिक अनाज खाने के बाद हुए कैंसर से उनकी दादी और पिता की मृत्यु हो गई।
इससे व्यथित होकर किसान न केवल अपने खेत में खेती का तरीका बदला, बल्कि अब उनकी प्रेरणा से पड़ोसी सहित गांव के कई लोग रासायनिक खेती को छोड़ चुके है। कहानी शाजापुर जिले के गांव कडवाला के निवासी किसान हीरालाल विश्वकर्मा की है। अब उनसे प्रेरित होकर रिश्तेदार ने भी जैविक खेती शुरू कर दी है। इसमें मेहनत थोड़ी ज्यादा लेकिन मुनाफा भी अच्छा होता हैं।
पहले दादी की 1996 में कैंसर से मौत हो गई। इसके बाद पिता 2012 में कैंसर पीड़ित हुए और 6 साल कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी 2018 में उन्हें नहीं बचा सके। पिता की मौत के बाद परिवार को बीमारियों से बचाने और स्वस्थ्य रहने के लिए डाक्टरों ने हीरालाल को बताया कि आजकल के रासायनिक खानपान के कारण भी कैंसर होता है और इसी कैंसर रोग से उनके पिता-दादी की मौत हुई।
इस बात को हीरालाल ने गांठ बांध लिया और वर्ष 2018 से अपने खेत में गोमूत्र, गोबर, पत्तों आदि से खाद बनाकर जैविक खेती करने लगे। पहले अपने घर के लिए गेहूं, सब्जी, खीरा, मिर्ची, लोकी दाल आदि सब जैविक ढंग से ही उगाया और भोजन में शामिल किया। 20 बीघा जमीन है ज्यादातर पर जैविक खेती ही कर रहे हैं। गाय है, इनका गोबर, गोमूत्र एक जगह एकत्र करते हैं। इसी से खाद बनाकर जमीन में डालते हैं। देसी गाय का गोबर, जीवामृत व डीकंपोजर डाल रहे हैं, तो उपज भी अच्छी हो रही है।
हीरालाल ने बताया कि उनके परिवार में 9 सदस्य हैं और जैविक ढंग से उगाए गए आनाज और सब्जी से पूरा परिवार भी स्वस्थ रहने लगा हैं। किसी को गंभीर बीमारी नहीं है। 65 वर्षीय उनकी माताजी और बच्चे, पत्नी को भी लंबे समय तक सामान्य बुखार तक नहीं हुआ। हीरालाल को जैविक सब्जी और फसलों की कीमत भी अच्छी ही मिलती है ,सब्जी मंडी में व्यापारी उनकी सब्जियों के आने का इंतजार करते है और आते ही तुरंत बिक्री भी हो जाती है।
इस तरह हीरालाल को मानो कुंजी मिल गई और उन्होंने गांव के अन्य किसानों को जैविक खेती के लाभ बताने शुरू किए और खुद का उदाहरण दिया। लोगों ने भी हीरालाल की बदली हुई स्थिति देखी तो प्रेरित होकर जैविक खेती शुरू की। गांव के ही मनोहर पाटीदार, गोविन्द पाटीदार, राधे श्याम धनगर, राजेश पाटीदार सहित दर्जनों किसान अब रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक ढंग से खेती करने लगे हैं। जो परिवार जैविक आनाज और सब्जी खा रहे हैं उनको स्वास्थ्य में लाभ भी मिल रहा है। अब स्थिति यह है कि गांव सहित अन्य जगहों के अधिकांश किसान रासायनिक खेती छोड़ चुके हैं और जैविक खेती ही कर रहे हैं।
हीरालाल ही नहीं उनकी पत्नी रेखा विश्वकर्मा ने भी भोपाल और शाजापुर में ट्रेनिंग के बाद कृषि सखी बनकर आजीविका मिशन से जुड़कर दीदियों को निशुल्क पोषण वाटिका का प्रशिक्षण भी दे रही है। उन्होंने पटलावदा, मितेरा, लाडखेड़ा, कडवाला सहित 10 से 11 गांवों में जाकर पोषण वाटिका बनवाई है।
रेखा विश्वकर्मा ने बताया कि अभी तक 100 से ज्यादा दीदियों को प्रशिक्षण दे चुकी हूं। आपके घर के आसपास थोड़ी सी भी जमीन है तो आप उसमें पोषण वाटिका यानि किचन गार्डन बना सकते हैं। पोषण वाटिका में लगी सब्जियां ना सिर्फ आपको बिना पैसे के मिलेंगी बल्कि वो कीटनाशक रहित यानि पूरी तरह जैविक होंगी जो आपको बीमारियों और कुपोषण से मुक्त कर सेहतमंद बनाएंगी।
इस प्रकार सात दिनों के लिए सात प्रकार की सब्जियां आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। साथ ही पांच से छह व्यक्ति के परिवारों की सब्जियों की वार्षिक पूर्ति आसानी से हो जाती है। पोषण वाटिका में चार पत्तेदार, चार फल वाली, दो बेल वाली, दो जड़ वाली सब्जियां लगाते हैं।
वर्तमान समय में लोग अब रासायनिक की जगह जैविक खेती को अपना रहे हैं। अत्यधिक रासायनों के प्रयोग से हमारा भोजन भी विषाक्त होता जा रहा है। जबकि जैविक खेती भूमि के प्राकृतिक गुणों को बनाए रखने के साथ हमें रसायनमुक्त शुद्ध भोजन प्रदान करती है। जैविक फसल का स्वाद कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से तैयार की गई सब्जियों और आनाज से अलग होता है। जैविक पूरी तरह से शुद्ध होती है। यदि सभी लोग जैविक खेती करें, तो कैंसर जैसी बीमारियों से मुक्ति मिल सकती है। खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो जैविक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए। - जीआर अम्बावतिया, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक शाजापुर