Rashtriya Panchang: उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। सबसे वैज्ञानिक और सटीक कैलेंडर होने के नाते भारतीय राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत्) हमारे स्वाभिमान और आत्मविश्वास की पहचान है। एक वैज्ञानिक अभिव्यक्ति है मगर अफसोस की बात है कि यह लोगों के मानस में किसी का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाया।
यह बात विज्ञान प्रसार विभाग के विज्ञानी डा. अरविंद सी. रानाडे ने विक्रम विश्वविद्यालय में हुई प्रेसवार्ता में कही। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पंचांग के वैज्ञानिक पहलुओं पर मंथन करने को 22 और 23 अप्रैल को विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में राष्ट्रीय संगोष्ठी होगी। यहीं देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित 30 कैलेंडरों की प्रदर्शनी भी लगेगी। इसमें 228 ज्योतिषि, पंचांगकर्ता, खगोल विज्ञानी एवं विद्धान सम्मिलित होंगे। आजादी के अमृत महोत्सव अंतर्गत केंद्रीय संस्कृति, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, विज्ञान भारती, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय और विक्रम विश्वविद्यालय की ओर से यह दो दिवसीय संगोष्ठी होने जा रही है।
शुभारंभ सुबह 10 बजे होगा। एक कार्यक्रम डोंगला में भी इसी दिन दोपहर 3 बजे से होगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पंचांग को भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 को लागू किया था। इसे चैत्र 01, 1879 के रूप में लागू किया गया था। वर्तमान में हम वर्ष 1944 में हैं। प्रेसवार्ता को मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के डायरेक्टर जनरल प्रो. अनिल कोठारी, विक्रम विवि के कुलपति प्रो. अखिलेशकुमार पांडेय, संस्कृत विवि के कुलसचिव दिलीप सोनी, विज्ञान भारती के अध्यक्ष प्रमोदकुमार वर्मा, संगठन मंत्री प्रजातंत्र गंगेले ने भी संबोधित किया।
शुभारंभ सुबह 10 बजे होगा। एक कार्यक्रम डोंगला में भी इसी दिन दोपहर 3 बजे से होगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पंचांग को भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 को लागू किया था। इसे चैत्र 01, 1879 के रूप में लागू किया गया था। वर्तमान में हम वर्ष 1944 में हैं। प्रेसवार्ता को मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के डायरेक्टर जनरल प्रो. अनिल कोठारी, विक्रम विवि के कुलपति प्रो. अखिलेशकुमार पांडेय, संस्कृत विवि के कुलसचिव दिलीप सोनी, विज्ञान भारती के अध्यक्ष प्रमोदकुमार वर्मा, संगठन मंत्री प्रजातंत्र गंगेले ने भी संबोधित किया।