उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। पंचकोसी यात्रा का आखिरी पड़ाव ग्राम जैथल स्थित श्री दुर्दुरेश्वर महादेव मंदिर है। वैशाख कृष्ण चतुर्दशी को सुबह पंचकोसी यात्री इस मंदिर में भगवान दुर्दुरेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करते हैं। दोपहर में विश्राम के बाद यात्री पिंग्लेश्वर के रास्ते पुनःनगर में प्रवेश करते हैं तथा शिप्रा के रेती घाट स्थित कर्क राज मंदिर में परिसर में विश्राम के लिए ठहरते हैं। अगले दिन अमावस्या पर सुबह शिप्रा स्नान के बाद यात्री शिप्रा के दोनों किनारों पर स्थित अट्ठावीस तीर्थ की यात्रा करते हैं। पश्चात भगवान नागचंद्रेश्वर को बल लौटाकर यात्रा का पूर्णता प्रदान करते हैं।
धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार भगवान दुर्दुरेश्वर महादेव के दर्शन पूजन से भक्त समस्त प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त कर स्वर्ग के समान सुख को भोगता है। वह स्वरूपवान, पुत्रवान, निरोग तथा पुण्यात्मा होकर इंद्र, यम, कुबेर तथा वरुण के समान ऐश्वर्य का लाभ प्राप्त करता है। जो मनुष्य दुर्दुरेश्वर महादेव का दर्शन पूजन करते हैं उन्हें जप, तप, अनुष्ठान के बिना ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसी मान्यता के चलते भक्त 84 महादेव के क्रम में 84 वें नंबर पर आने वाले दुर्दुरेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं। पंचकोसी यात्रा का समापन भी इन्हीं के दर्शन पूजन उपरांत होता है। नईदुनिया के साथ श्रद्धालु आज यात्रा के समापन पर भगवान दुर्दुरेश्वर महादेव के दर्शन कर समस्त सुखों की प्राप्ति तथा कोरोना महामारी निवारण के लिए घर बैठे प्रार्थना करें।
ब्राह्मण समाज ने किया पूजन
अभा ब्राह्मण समाज द्वारा परंपरा के निर्वहन व कोरोना महामारी निवारण की कामना से शुरू गई पंचकोसी यात्रा रविवार को ग्राम जैथल पहुंची। पं. सुरेंद्र चतुर्वेदी के नेतृत्व में यात्रियों के दल ने भगवान श्री दुर्दुरेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की। यात्रियों ने मंदिर के शिखर पर नया ध्वज चढ़ाया। पं.चतुर्वेदी ने बताया यात्री सोमवार सुबह नगर प्रवेश करेंगे। पश्चात अट्ठावीस तीर्थ यात्रा शुरू की जाएगी। अमावस्या पर भगवान नागचंद्रेश्वर की पूजा अर्चना कर उन्हें बल लौटाकर यात्रा को पूर्णता प्रदान करेंगे।