धीरज गोमे, नईदुनिया उज्जैन: भारत के चार प्रमुख महाकुंभ नगरों में शुमार उज्जैन ‘सुपर स्वच्छता लीग’ में स्थान हासिल कर न केवल इंदौर की बराबरी पर आया है, बल्कि अब वह नासिक, हरिद्वार और वाराणसी जैसे तीर्थनगरों के लिए एक अनुकरणीय केस स्टडी बन गया है। यह सम्मान प्रशासनिक दूरदर्शिता, तकनीकी एकीकरण और जनसहयोग की त्रिवेणी से संभव हुआ। सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से समृद्ध उज्जैन ने यह संदेश दिया है कि स्वच्छता केवल सरकारी अभियान नहीं, बल्कि नागरिक आस्था का प्रतिबिंब बन सकती है।
मालूम हो कि उज्जैन को इस लीग में स्थान मिलना किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि लगातार आठ वर्षों के सुनियोजित प्रयासों, प्रशासनिक इच्छाशक्ति और नागरिक भागीदारी का परिणाम है। स्वच्छता को ‘धार्मिक कर्तव्य’ मानने की सोच ने यहां एक सांस्कृतिक आंदोलन का रूप ले लिया है। शहर में वर्ष 2016 से कचरा प्रसंस्करण संयंत्र कार्यरत है, जो देश के कई शहरों के लिए एक उदाहरण बना। यहां विकसित की गई सिवरेज नेटवर्किंग, मशीन-आधारित सफाई और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली ने उज्जैन को सतत स्वच्छता के मॉडल में बदल दिया।
2016 के सिंहस्थ महापर्व के बाद उज्जैन ने अपने शहरी नियोजन और आयोजन की प्रकृति को दीर्घकालिक सोच से जोड़ा। मशीन आधारित सफाई, कचरा प्रसंस्करण संयंत्र, डिजिटल निगरानी और धार्मिक आयोजनों में स्वच्छता को अनिवार्य बनाकर शहर ने स्वच्छ भारत मिशन को आस्थामूलक स्वरूप प्रदान किया।
‘सुपर स्वच्छता लीग’ केवल सफाई की पारंपरिक व्यवस्था नहीं, बल्कि सतत विकास, तकनीकी नवाचार और नागरिक सहभागिता जैसे आयामों पर केंद्रित केंद्र सरकार की नई रैंकिंग प्रणाली है। उज्जैन ने इसमें न केवल उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, बल्कि धार्मिक शहरों के लिए सांस्कृतिक और व्यावहारिक प्रेरणा भी बन गया।
‘सुपर स्वच्छता लीग’ में उज्जैन को 3 से 10 लाख आबादी वाले टॉप-6 शहरों में स्थान मिलने पर गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उज्जैन को सम्मानित किया। कलेक्टर रौशन कुमार सिंह ने उपलब्धि को शहर के लिए गौरव का क्षण बताया और इसे नासिक, हरिद्वार और वाराणसी जैसे शहरों के लिए एक आदर्श बताया। उन्होंने कहा कि ‘उज्जैन की सफलता के पांच स्तंभ हैं - आस्था आधारित व्यवस्था, आयोजन से स्थायित्व, तकनीकी एकीकरण, प्रशासनिक प्रतिबद्धता और जन सहयोग। इन सबने मिलकर इस सांस्कृतिक स्वच्छता मॉडल को मूर्त रूप दिया है, जिससे अन्य शहर सीखेंगे।’
महाकालेश्वर मंदिर क्षेत्र में पूजा-पद्धति के साथ स्वच्छता का समावेश किया गया। यह प्रयास न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि व्यवहारिक रूप से श्रद्धालुओं की सोच को भी प्रभावित कर रहा है। सिंहस्थ के दौरान विकसित अधोसंरचना को स्थायित्व से जोड़ा गया, जिससे स्वच्छता केवल पर्व तक सीमित न रहकर सतत प्रक्रिया बनी।
उज्जैन मॉडल रचना के पांच स्तंभ
आस्था से जुड़ी व्यवस्था: महाकाल क्षेत्र में स्वच्छता को पूजा का हिस्सा बनाया गया।
स्थायित्व में तब्दील आयोजन: सिंहस्थ के इंफ्रास्ट्रक्चर को शहर के विकास से जोड़ा गया।
प्रशासनिक प्रतिबद्धता: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में सक्रिय क्रियान्वयन।
तकनीकी एकीकरण: मशीनें, डिजिटल ट्रैकिंग और नेटवर्क व्यवस्था।
जन सहयोग की ऊर्जा: स्कूल, संस्थाएं, व्यापारी और नागरिकों की सामूहिक भागीदारी।
नगर निगम, 371 करोड़ रुपये से डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन के लिए 10 वर्षीय नई व्यवस्था लागू करने जा रहा है। ठेकेदार तय करने की कार्रवाई प्रक्रिया में है। नए ठेकेदार के लिए 220 नए वाहन, 420 सफाई कर्मियों की व्यवस्था, जीपीएस, साउंड सिस्टम और आरएफआईडी जैसी अत्याधुनिक ट्रैकिंग तकनीक अनिवार्य की गई है। दो शिफ्टों में कलेक्शन, 100 प्रतिशत सग्रिगेटेड कचरे पर ही भुगतान, और सेवा में चूक पर जुर्माना भी निर्धारित किया गया है। यह व्यवस्था अगस्त 2025 में पुरानी एजेंसी के अनुबंध समाप्त होने के बाद लागू होगी।