किसी भी मां के लिए अपने बच्चे को डेकेयर में भेजना एक मुश्किल फैसला होता है। कई बार यह जरूरी हो जाता है और आपको तय करना ही होता है। ये कुछ बातें आपको यह मुश्किल फैसला लेने में मदद करेंगी...
डेकेयर में भेजने के फैसला का सबसे उजला पहलू यह है कि आपके बच्चे को उसी की उम्र के बच्चों को साथ मिलेगा। इस तरह के माहौल में आपका बच्चा सोशल होना सीखेगा। यहां से उसे प्री-स्कूल और किंडरगार्टन जाने में भी आसानी होगी। वो जल्दी से जगह के माहौल के अनुरूप खुद को ढालना सीख लेगा।
एक शेड्यूल में रहना बच्चों की सबसेे बड़ी जरूरत होती है। रूटीन नहीं होगा तो बच्चे चिढ़चिढ़े भी बन सकते हैं। डेकेयर में उन्हें तयशुदा वक्त पर सारे काम करना होंगे। यह शायद वो चीज है जो अभी तक आप भी अपने बच्चे को नहीं दे पाए हैं। अभी तक तो वो कभी भी सोता और कभी भी खाता था। हो सकता है यह आपको उसके लिए थोड़ा जल्दी लगे, लेकिन वो दुनिया के कायदे जल्दी से सीख भी तो रहा है।
यह तय है कि आपका बच्चा सर्दी और कीटाणु भी साथ लेकर लौटेगा। अगर कुछ वक्त वो और घर पर बिताता तो शायद ऐसा नहीं होता। वैसे अध्ययन बताते हैं कि जब वो स्कूल जाएगा तो साथी बच्चों की तुलना में कम बीमार रहा करेगा क्योंकि हो सकता है दूसरे बच्चे डे केयर में नहीं रहे हों और उनका इम्यून सिस्टम इतना मजबूत नहीं हो।
उम्र के हिसाब से डेकयर में बच्चों को क्राफ्ट्स में बिजी रखा जाता है, उन्हें लेसन सिखाए जाते हैं। इससे वे सोचना शुरू करते हैं। उसका असर आपको तब दिखेगा जब वे स्कूल में अच्छे ग्रेड्स लेकर आएंगे। यह भी पक्का है कि डेकेयर में रहे बच्चों बौद्धिक क्षमताएं, आम बच्चों से ज्यादा ही होती हैं।
भले ही अपने बच्चे को डेकेयर में अजनबियों के भरोसे छोड़ना और उसकी देखभाल करने की इजाजत देना मुश्किल फैसला हो, लेकिन यह भी जरूरी है कि बतौर महिला या मां आपको अपने बच्चों से अपने लिए थोड़ा वक्त चुराना भी जरूरी है। अपनी समस्याओं के हल के लिए, आराम और खेल के लिए आपको भी कुछ वक्त चाहिए, ऐसा करेंगी तो ही अच्छी मां भी बन पाएंगी।