नईदुनिया, ग्वालियर (World Hearing Day 2025)। ईयरफोन के इस्तेमाल से युवाओं में सुनने की क्षमता कम हो रही। साथ ही सड़क क्रॉसिंग के समय भी ईयरफोन के इस्तेमाल से दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर से खबर है कि हर दिन शहर में नाक,कान, गला रोग विशेषज्ञ की ओपीडी में 100 से अधिक लोग कान में दर्द होने, सीटी या झींगुर जैसी आवाज आने के साथ कान की चमड़ी पर संक्रमण की समस्याएं लेकर पहुंच रहे हैं।
इनकी जांच और काउंसलिंग में यह पता चला है कि वे लगातार 8 से दस घंटे तक ब्लूटूथ, ईयरफोन और हेडफोन का उपयोग करते हैं। इससे 19 से 29 की आयु के 20 प्रतिशत युवाओं में सुनने की क्षमता कम हो रही है।
जिला अस्पताल मुरार के ईएनटी विभाग के डॉ. अमित रघुवंशी का कहना है कि हर दिन पांच में से दो मरीज बहरेपन का इलाज करवाने आ रहे हैं। लंबे समय तक ईयर फोन पर म्यूजिक सुनने से कान के पर्दे की मोटाई पर प्रभाव पड़ता है।
दूर की आवाज सुनने में परेशानी के अलावा बहरापन बढ़ रहा है। ईएनटी विशेषज्ञ डा. रघुवंशी ने बताया कि एक घंटे से अधिक 80 डेसिबल से तेज वॉल्यूम में गीत सुनते हैं तो लगभग 5 या 6 साल में सुनने की क्षमता कमजोर हो सकती है या स्थाई रूप से बहरापन भी हो सकता है।
सुनने की नस बहुत सेंसेटिव होती है, ज्यादा साउंड आने पर नस परेशान हो जाती है। फोन के लगातार इस्तेमाल से एंग्जाइटी, डिप्रेशन, नींद नहीं आना जैसी बीमारियां भी सामने आ रही हैं।
युवा इस बीमारी को सीनियर सिटीजन की समस्या मानते हैं, लेकिन हियरिंग लॉस की समस्या अब 19 वर्ष की उम्र में ही देखने को मिल रही है। वहीं ईयर फोन पर लंबे समय तक लाउड म्यूजिक सुनने से कान की नसें डेड हो जाती हैं।
इससे सुनने की क्षमता पूरी तरह चली जाती है। प्रतिदिन आठ घंटे 90 डेसीबल साउंड सुन सकते हैं। इससे ज्यादा साउंड कान के पर्दे खराब कर सकता है।
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