फ्रैक्चर होने पर बरतें कुछ सावधानियां
ऐसी स्थिति में यदि सही समय पर फर्स्ट एड मिल जाए तो काफी हद तक पीड़ा को कम किया जा सकता है।
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Publish Date: Wed, 29 Jul 2015 09:44:06 PM (IST)
Updated Date: Fri, 31 Jul 2015 07:00:50 AM (IST)

ऐसी स्थिति में यदि सही समय पर फर्स्ट एड मिल जाए तो काफी हद तक पीड़ा को कम किया जा सकता है। जिस तरह शरीर के अलग-अलग हिस्सों में हड्डियों का आकार और घनत्व अलग होता उसी प्रकार फ्रैक्चर भी कई प्रकार के होते हैं और इलाज भी उसके अनुसार ही किया जाता है।
ये हैं फ्रैक्चर के प्रकार
ओपन फ्रैक्चर : त्वचा के कटने की स्थिति में इस प्रकार का फ्रैक्चर हो जाता है।
क्लोज्ड फ्रैक्चर : इसमें त्वचा कटती नहीं।
कॉम्लिकेटेड फ्रैक्चर: जिस हड्डी में फ्रैक्चर हुआ है उससे जुड़ा अंग क्षतिग्रस्त हो जाता है।
स्ट्रेस फ्रैक्चर : लगताार दबाव पड़ने के कारण हेयरलाइन फ्रैक्चर हो जाता है।
ग्रीनस्टिक फ्रैक्चर : बच्चों की लचीली हड्डियों में होने वाला फ्रैक्चर।
फ्रैक्चर के ये होते हैं लक्षण
- तेज दर्द
- मूवमेंट में परेशानी
- सूजन या ब्रूजिंग या ब्लीडिंग
- आकार का बिगड़ जाना या जोड़ों का असामान्य रूप से मुड़ जाना
- दबाव पड़ने पर दर्द महसूस होना
हर फ्रैक्चर के फर्स्ट एड का तरीका है अलग
- फ्रैक्चर किस जगह पर हुआ है और वह किस प्रकार का है उसका फर्स्ट एड भी उसी पर निर्भर करता है।
- ओपन फ्रैक्चर में इलाज से पहले ब्लीडिंग को रोकना जरूरी होता है। पहले जख्म को धोएं और फिर उस पर पट्टियां लगाएं।
- क्लोज्ड फ्रैक्चर में सबसे पहले व्यक्ति की सांसें चेक करनी चाहिए। व्यक्ति को शांत कराएं, इस बात की जांच करें कि उसे कहीं और जख्म तो नहीं हुआ है। जिस स्थान पर फ्रैक्चर हुआ है उसे हिलाए-डुलाएं नहीं। दर्द या सूजन को कम करने के लिए बर्फ की सिकाई करें। इसके बाद तत्काल ही डॉक्टर को दिखाएं।
ये ना करें
- चोट लगे हिस्से पर मसाज
- टूटी हड्डी की स्ट्रेचिंग
- टूटी हड्डी को बिना सहारा दिए हिलाना-डुलाना
- फ्रैक्चर के ऊपर या नीचे
- जोड़ों को मूव
- मुंह से तरल या खाद्य देना।