रायपुर। World Haemophilia Day 2023: अगर मामूली चोट लगने पर भी खून बहने लगे। शरीर के अंदर रक्तस्राव की वजह से स्थिति गंभीर हो जाए। पेट, पैर समेत शरीर के अन्य हिस्सों में सूजन हो जाए, तो ये लक्षण हीमोफीलिया बीमारी के हो सकते हैं। सिर्फ पुरुषों में होने वाली इस बीमारी को जड़ से खत्म करने का कोई इलाज अब तक उपलब्ध नहीं है। इस अनुवांशिक बीमारी में कुछ दवाओं और इंजेक्शन से मरीज जीवन तो जी सकता है, लेकिन औसत आयु 30 वर्ष तक की हो होती है। हालांकि यह बीमारी बहुत कम लोगों को होती है, लेकिन इसे लेकर जागरूकता बहुत जरूरी है।
मामूली चोट लगने पर भी खून बहने लगे तो हो सकता है हीमोफीलिया
रक्तरोग विशेषज्ञ डा. विकास गोयल ने बताया कि हीमोफीलिया व्यक्ति के खून में फैक्टर-8 और फैक्टर-9 कम होने से होता है। इन दोनों कारणों से यह दो प्रकार के होते हैं। इसमें हीमोफीलिया-ए से ग्रस्त रोगियों के खून में थक्के बनने के लिए आवश्यक 'फैक्टर-8" की कमी हो जाती है, वहीं दूसरी ओर हीमोफीलिया-बी में 'फैक्टर-9" की कमी हो जाती है। मरीज के शरीर में दोनों ही घटक खून का थक्का बनाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इसमें फैक्टर-8 और फैक्टर-9 का इंजेक्शन दिया जाता है, जो हर सप्ताह लगाना पड़ता है।
इसलिए होता है हीमोफीलिया
चिकित्सकों ने बताया कि हीमोफीलिया एक अनुवांशिक रोग है। इससे पीड़ित व्यक्ति के खून में थक्का बनने की क्षमता बहुत कम होती है। रोग में जींस में बदलाव के कारण शरीर में क्लाटिंग फैक्टर प्रोटीन का निर्माण नहीं हो पाता और लगातार रक्तस्राव होता है। कई केस में ब्रेन में रक्तस्राव होने से यह मृत्यु का कारण भी बनता है।
बीमारी का ऐसे होता है इलाज
चिकित्सकों ने बताया कि यूं तो इसे जड़ से खत्म करने का अब तक कोई इलाज नहीं है, लेकिन मरीज के शरीर में फैक्टर-8 या फैक्टर-9 की कमी होने से बाहर से इंजेक्शन के जरिए इसकी आपूर्ति की जाती है। साथ ही मरीज में यदि बीमारी की गंभीरता कम है तो दवाओं के जरिए भी इलाज किया जा सकता है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज शिशुरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर ओंकार खंडवाल ने कहा, ओपीडी में साल में हीमोफीबिया के करीब 10 मरीज पहुंचते हैं। इसमें लगने वाले फैक्टर-8 का इंजेक्शन तो है, लेकिन फैक्टर-9 का इजेक्शन उपलब्ध नहीं है। अनुवांशिक बीमारी को लेकर विभाग ने नई दवाओं के लिए छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कारपोरेशन को मांगपत्र भेजा है।
रक्तरोग विशेषज्ञ डा. विकास गोयल ने कहा, यह अनुवांशिक बीमारी बहुत कम लोगों में होती है। पिछले 10 वर्षों में मेरी ओपीडी में करीब 50 मरीज पहुंचे हैं। इसमें हर सप्ताह लगने वाली दवाओं से राहत तो दी जा सकती है, लेकिन बीमारी जड़ से खत्म नहीं होती, लेकिन हिम्मत नहीं हारनाी चाहिए। सावधानी और जागरूकता से राहत मिल सकती है।