नई दिल्ली, प्रेट्र: आप एक बहुत ही प्रचलित कहावत अक्सर सुनते होंगे 'आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपय्या'। मगर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के लिए यह कहावत बिल्कुल ही उलट साबित हो रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले छह सालों में इसने पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तहत जुर्माने एवं दंड के रूप में 45.81 करोड़ रुपये एकत्र किए।
मगर, इसका सिर्फ 0.2 प्रतिशत अर्थात नौ लाख रुपया ही इसने पर्यावरण संरक्षण पर खर्च किया है। सामाजिक कार्यकर्ता अमित गुप्ता द्वारा दायर सूचना के अधिकार (आरटीआई) के माध्यम से प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि सीपीसीबी ने साल 2018 से 2024 तक पर्यावरण संरक्षण के मद में जितने रुपये खर्च किए, वह जुर्माने के रूप में एकत्र की गई कुल राशि के पचासवें हिस्से से भी कम है।
इससे स्पष्ट होता है कि सीपीसीबी पर्यावरण संबंधी जुर्माने की एक फीसद राशि भी खर्च नहीं कर पाता है। यूं तो पिछले कई सालों में पर्यावरण क्षतिपूर्ति (ईसी) के खर्च का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। एकमात्र अपवाद साल 2024-25 है, जब सिर्फ नौ लाख रुपये का उपयोग किया गया था। गौरतलब है कि सीपीसीबी विभिन्न मामलों में प्रदूषण फैलाने वालों पर सीधे जुर्माना लगाता है और इसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा जमा की गई पर्यावरण संबंधी क्षतिपूर्ति का 25 प्रतिशत प्राप्त होता है।
इस राशि का उपयोग पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है। इसमें प्रयोगशालाओं को मजबूत करना, नेटवर्क की निगरानी करना, अध्ययन एवं क्षमता निर्माण और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा नियुक्त समितियों द्वारा किए जाने वाले खर्च शामिल हैं। हालांकि, इस राशि का एक बड़ा हिस्सा अभी तक खर्च नहीं किया गया है।
आंकड़ों से पता चला है कि इस राशि का लगातार कम उपयोग हो रहा है। सीपीसीबी ने 2016-17 में 29.28 करोड़ रुपये एकत्र किए, लेकिन केवल 0.01 करोड़ खर्च किए। वर्ष 2023-24 में 65.28 करोड़ एकत्र किए गए, जबकि खर्च केवल 22.38 करोड़ रहा। 2024-25 में इसने 74.39 करोड़ एकत्र किए, लेकिन केवल 31.98 करोड़ रुपये खर्च किए। इससे पहले मार्च में एक संसदीय समिति ने कहा था कि 2024-25 में 'प्रदूषण नियंत्रण' योजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय को 858 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। इनमें से 7.22 करोड़ खर्च किए गए।
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