
डिजिटल डेस्क। लाल किले के पास हुए घातक धमाके की जांच में एक अहम जानकारी सामने आई है। जांच एजेंसियों ने पाया कि आतंकी एक-दूसरे से संवाद करने के लिए ईमेल का इस्तेमाल करते थे, लेकिन किसी भी ईमेल को भेजते नहीं थे। इसकी बजाय वे संदेश को ड्राफ्ट में सेव करते थे।
जांच अधिकारियों के अनुसार, मुख्य संदिग्ध डॉ. उमर उन नबी जिन पर विस्फोट वाली कार चलाने का संदेह है और उनके साथी डॉ. मुजम्मिल गनाई तथा डॉ. शाहीन शाहिद एक ही ईमेल अकाउंट में लॉग इन करते थे और वहीं मैसेज छोड़ते थे। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि वे ड्राफ्ट में मैसेज टाइप कर उसे भेजने के बजाय तुरंत हटा देते थे ताकि कोई डिजिटल ट्रेस न बचे।
क्यों अपनाया था यह तरीका
सूत्रों का कहना है कि यह तरीका निगरानी से बचने और ऑनलाइन ट्रैफिक को ट्रेस होने से रोकने के लिए अपनाया गया था, क्योंकि संदेश इंटरनेट पर ट्रांसमिट ही नहीं होता था।
अधिकारी बताते हैं कि यह तरीका दिखाता है कि मॉड्यूल कितनी सोच-समझकर काम कर रहा था और किस तरह बिना पकड़े जाने वाले चैनलों का उपयोग करके आतंकी गतिविधियों का समन्वय किया जा रहा था।
जांच में यह भी सामने आया कि मॉड्यूल के सदस्य थ्रीमा नाम के स्विस एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप और कुछ अन्य सुरक्षित प्लेटफॉर्म पर लगातार संपर्क में थे। पुलिस के अनुसार, उन्होंने कथित रूप से इसी के जरिए साजिश से जुड़ी योजनाओं और निर्देशों का आदान-प्रदान किया तथा विदेश में बैठे संचालकों से संपर्क बनाए रखा।
अधिकारियों का क्या कहना
एक अधिकारी ने बताया कि थ्रीमा में न तो फोन नंबर और न ही ईमेल आईडी की जरूरत होती है, जिसके कारण उपयोगकर्ताओं को ट्रैक करना बेहद मुश्किल हो जाता है। यह प्रत्येक यूज़र को एक यूनिक आईडी देता है, जो किसी भी मोबाइल नंबर या सिम से लिंक नहीं होती।
जांच दल को यह भी आशंका है कि आरोपी डॉक्टरों ने गोपनीय संचार के लिए एक प्राइवेट थ्रीमा सर्वर तैयार किया था, जिसका उपयोग दिल्ली विस्फोट की साजिश में शामिल संवेदनशील दस्तावेज, नक्शे और लेआउट साझा करने के लिए किया जाता था।