डिजिटल डेस्कः देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर आज प्रदूषण के ऐसे भंवर में फंस चुके हैं, जहां सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। हवा में घुला जहर अब केवल आंकड़ों का खेल नहीं रहा, यह हर उम्र के लोगों के स्वास्थ्य को चुपचाप निगल रहा है।
सबसे अधिक खतरे में हैं वो मासूम, जिनका इस प्रदूषण में कोई दोष नहीं। जन्म लेते ही ये बच्चे जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। परिणामस्वरूप शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक बीमारियां भी उनके जीवन का हिस्सा बनती जा रही हैं।
भारत में हर साल 1.7 लाख बच्चों की मौत प्रदूषण से मौत
द लैंसेट की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के लगभग 1.7 लाख बच्चों की मौत केवल प्रदूषण के कारण होती है। पिछले एक महीने में दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता लगातार गंभीर श्रेणी में बनी हुई है।
अस्पतालों में बढ़ रहे मरीज
अस्पतालों में खांसी, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ और अस्थमा के मरीजों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इनमें से अधिकतर आठ साल से कम उम्र के बच्चे हैं। पहले जहां सामान्य खांसी-जुकाम 5–7 दिन में ठीक हो जाता था, वहीं अब प्रदूषण के कारण इसका असर 15–20 दिन तक बना रहता है।
छोटे बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि छोटे बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, जिससे प्रदूषण का प्रभाव उनके शरीर पर और गहरा पड़ता है। प्रदूषण की मार अब केवल बाहर की हवा तक सीमित नहीं रही।
घरों में धूल के कणों और रसोई से निकलने वाले धुएं के कारण इनडोर एयर क्वालिटी भी तेजी से बिगड़ रही है, जिससे मासूमों के स्वास्थ्य पर दोहरी चोट पड़ रही है।
बच्चों में बढ़ रही बीमारियां
1. जुकाम व खांसी: प्रदूषण के कारण यह सामान्य संक्रमण अब गंभीर रूप ले रहा है। अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या 40% तक बढ़ गई है।
2. अस्थमा: छोटे बच्चों में अस्थमा जैसे लक्षण तेजी से देखे जा रहे हैं। लंबे समय तक प्रदूषण में रहने पर यह स्थायी अस्थमा में बदल सकता है।
3. निमोनिया: लगातार खांसी, जुकाम और सांस लेने में कठिनाई कई बार निमोनिया का रूप ले रही है।
4. फेफड़ों पर असर: प्रदूषण से फेफड़ों का विकास रुक रहा है। इसका असर बच्चों की बढ़ती उम्र में भी बना रह सकता है।
5. सीओपीडी (काला दमा): पहले यह बीमारी सिर्फ धूम्रपान करने वालों तक सीमित थी, अब प्रदूषित हवा से यह गैर-धूम्रपान करने वालों में भी दिख रही है।
6. आंखों की समस्या:आंखों में जलन, सूखापन और धुंधलापन की शिकायतों में 60% तक इजाफा हुआ है।
7. मस्तिष्क पर प्रभाव: प्रदूषण बच्चों के मस्तिष्क के विकास को धीमा कर रहा है, जिससे चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी और स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है।
गर्भ में भी प्रदूषण का असर
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषित हवा गर्भस्थ शिशु के लिए भी घातक बन रही है। जब गर्भवती महिला जहरीली हवा में सांस लेती है, तो हवा में मौजूद सूक्ष्म कण गर्भ तक पहुंचकर भ्रूण को नुकसान पहुंचाते हैं।
इससे बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषण नहीं मिल पाता, जिसके चलते समय पूर्व प्रसव, जन्म के समय कमजोरी और कई मामलों में गर्भस्थ शिशु की मृत्यु तक हो जाती है।