एजेंसी, श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता प्रो. अब्दुल गनी बट का बुधवार रात 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कश्मीर के अलगाववादी सियासत में एक प्रमूख और बड़ा नाम थे। वह एक लंबे अर्से से बीमार चल रहे थे। अपनी अंतिम सांस उन्होंने उत्तरी कश्मीर के बटेंगू सोपोर स्थित अपने पैतृक निवास में ही ली।
अलगाववादी नेता की मौत पर जम्मू-कश्मीर के कई छोटे-बड़े नेताओं ने शोक प्रकट किया है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने भी अब्दुल गनी बट के निधन पर दुख जाहिर किया। इस दौरान सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि बेशक हमारी राजनीतिक विचारधाराएं एक दूसरे पूरी तरह विरुद्ध रही हैं, लेकिन वह मुश्किल दौर में भी बातचीत के पक्षधर रहे हैं।
प्रो. अब्दूल गनी बट कश्मीर में हुरियत और अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करने वाले कट्टर अलगाववादी नेताओं में से थे। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से फारसी और लॉ की डिग्री प्राप्त की थी। जिसके बाद उन्होंने सोपोर में कुछ समय तक वकालत भी की। साल 1963 में वह जम्मू-कश्मीर शिक्षा विभाग में बतौर फारसी के प्रोफेसर नियुक्त हुए।
प्रो. गनी बट हमेशा से अलगाववादी गतिविधियों में शामिल रहे थे, अपने कॉलेज के छात्रों और अन्य लोगों के साथ कश्मीर को लेकर भारत के पक्ष की आलोचना करते थे। इस कारण उन्हें 1986 में सेवा से पदमुक्त कर दिया था। साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने जनमत संग्रह के वादे का भी जिक्र किया करते थे। उनका ऐसा कहना था कि भारत ने बंदूकों की गर्जना और लोकतंत्र के शोर के बीच कश्मीर में प्रवेश किया और फिर कब्जा कर बैठ गया।
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साल 2011 में श्रीनगर में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने घाटी की राजनीति में खलबली मचा दी थी। उन्होंने कहा था कि हमारे अपने ही कुछ लोगों को,हमारे अपनों ने ही कत्ल किया और कत्ल कराया है। हालांकि इस बयान के दौरान उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया था।