
मल्टीमीडिया डेस्क। मुरलीधर देवीदास आमटे को आज देश-दुनिया बाबा आमटे के नाम से जानती है। उनका जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगणघाट शहर में देवदास आमटे और लक्ष्मीबाई आमटे के घर में हुआ था। पिता जिला प्रशासन और राजस्व संग्रह की जिम्मेदारी निभाने वाले ब्रिटिश सरकारी अधिकारी थे। उनका परिवार संभ्रांत और अमीर था। उनका देहावसान 94 वर्ष की आयु में 9 फरवरी 2008 को हुआ था।
वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने कुष्ठ पीड़ितों, गरीबों के पुनर्वास और उनके अधिकार के लिए पूरा जीवन लगा दिया। बाबा आमटे और उनकी पत्नी साधना आमटे ने 15 अगस्त 1949 को उन्होंने एक पेड़ के नीचे आनंदवन में एक अस्पताल की शुरूआत की थी। आज उनके मिशन को उनके बेटे-बहू आगे बढ़ा रहे हैं। अपनी नि:स्वार्थ सेवा के लिए आमटे को कई पुरस्कार और सम्मान दिए गए।
1973 में, आमटे ने गडचिरोली जिले के मडिया गोंड जनजातीय लोगों के लिए काम किया और लोक बिरादरी प्रकल्प की स्थापना की। बाबा आमटे का बचपन बहुत ही अच्छा बीता। जब वह चौदह वर्ष के थे, तब उनके पास अपनी खुद की बंदूक थी। जब वह गाड़ी चलाने लायक हो गए, तब उनको एक स्पोर्ट्स कार मिल गई थी। मगर, शान-शौकत और चमक से दूर बाबा आमटे ने हमेशा दूसरों के लिए जीवन जीने के अपनी जिंदगी का लक्ष्य बनाया।
गांधी जी ने दिया था उपनाम
बाबा आमटे कानून के अच्छे जानकार थे और उन्होंने वर्धा में प्रैक्टिस करना शुरू किया था। वह ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में शामिल हो गए और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं के लिए एक रक्षा वकील के रूप में कार्य करने लगे। साल 1942 के भारत आंदोलन में जिन नेताओं को कैद किया था, उन्हें बाबा आमटे ने रिहा कराया।
उन्होंने महात्मा गांधी के सेवाग्राम आश्रम में कुछ समय बिताया और फिर ता-उम्र गांधीवादी बनकर रहे। जब गांधीजी को यह पता चला कि उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों से एक लड़की को बचाया है, तो गांधीजी ने उन्हें अभय साधक (सत्य के निडर साधक) रख दिया। उन दिनों कुष्ठ रोग को सामाजिक कलंक माना जाता था। इसके बारे में लोगों को जागरुक करने के साथ ही रोगियों का इलाज किया और उनकी सेवा भी की। इसके अलावा आमटे ने वन्यजीव संरक्षण और नर्मदा बचाओ आंदोलन के महत्व के बारे में जन जागरूकता फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई।
बाबा आमटे को मिले सम्मान और पुरस्कार
1971 में पद्मश्री विभूषण।
1978 में राष्ट्रीय भूषण।
1979 में जमनालाल बजाज पुरस्कार।
1980 में एनडी दीवान पुरस्कार।
1985 में रमण मेगसेसे पुरस्कार।
1986 में राजा राम मोहन राय पुरस्कार।
1988 में जीडी बिरला इंटरनेशनल पुरस्कार।
1988 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार ऑनर।
1990 में टेम्पलटन पुरस्कार।
1991 में ग्लोबल 500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान।
1991 में आदिवासी सेवक पुरस्कार।
1998 में अपंगो की सहायता के लिए अपंग मित्र पुरस्कार।
1999 में गांधी शांती पुरस्कार।
2004 में महाराष्ट्र भूषण सम्मान।