नई दिल्ली। देश के लिए शहादत देने के इतने साल बाद आज भी शहीद भगत सिंह देश के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, उनका नाम सुनते ही आज भी देश के जवानों के खून में उबाल आता है और वो मातृभूमि के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं।
बस यही तो चाहते थे भगत सिंह कि उनकी शहादत का कुछ ऐसा असर हो की देश को गुलाम बनाने की चाह रखने वालों के भी पैर उखड़ जाएं। अपनी शहादत के वक्त उनके मन में जो उम्मीद थी वो सच हुई। 28 सितंबर को 1907 को सरदार किशन सिंह और विद्यावती कौर के बेटे के रूप में जन्में भगत पर 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने गहरा प्रभाव डाला जिसके बाद वो क्रांति के पथ पर चल पड़े।
23 मार्च 1931 को जब उन्हें फांसी पर लटकाया गया तो उनके चेहरे पर शिकन का दुख की बजाय गर्व और हंसी थी। उन्होंने यह उम्मीद करते हुए फांसी के फंदे को चूमा था कि उनकी शहादत देश की मांओं को और भगत पैदा करने की प्रेरणा देगी। फांसी से ठीक एक दिन पहले भगत सिंह ने देश के नाम एक पत्र भी लिखा था। इस पत्र में उन्होंने अपने दिल की बात लिखी थी।
यह लिखा था पत्र में
साथियों,
स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था। आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं। अगर में फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धम पड़ जाएगा या संभवत: मिट ही जाए। लेकिन मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी। इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना किसी के बूते की बात नहीं रहेगी।
हां एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि में देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं उनका छोटा सा हिस्सा भी पूरा नहीं कर पाया। अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता।
इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।
- आपका साथी, भगतसिंह