
Cancer Patient Chemotherapy । बाल गिरने से लेकर डायरिया तथा मांसपेशी और जोड़ों में दर्द होने की समस्या उन मरीजों में होती है जो कीमोथेरेपी प्रक्रिया को कराते है। कीमोथेरेपी कराने से मरीजों के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है। हालांकि शुक्र हो नए युग के प्रोग्नोस्टिक टेस्ट का जिससे बहुत सारे स्तन कैंसर के मरीज अब कीमोथेरेपी कराने से बच सकते हैं और बीमारी से पूरी तरह से उबर भी सकते हैं।
ऑन्कोलॉजिस्ट का कहना है कि प्रोग्नोस्टिक टेस्ट की उपलब्धता मरीजों की ज्यादा तादाद तक पहुंचाने से उनकी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। इसके अलावा वे जहाँ पर कीमोथेरपी की जरुरत नहीं होती है वहां पर इस तरह के टेस्ट कराने से अनावश्यक खर्चे से बच सकते हैं।
सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ अमित वर्मा ने कहा, "कई मरीजों में लम्बे जीवन के लिए कीमोथेरेपी कराने की जरुरत होती है हालाँकि सभी स्तन कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी और आक्रामक कैंसर का इलाज कराने की जरुरत नहीं होती है। इनसे खतरनाक दुष्प्रभाव देखने को मिलते है। कैनअसिस्ट जैसे प्रोग्नोस्टिक टेस्ट से शुरूआती चरण में स्तन कैंसर मरीज में बीमारी के खतरे का आकलन करने से उनको कीमोथेरेपी कराने की जरुरत है या नहीं, डाक्टर इसके बारें में उन्हें सूचित कर सकता है। अगर ज्यादा संख्या में स्तन कैंसर के मरीज इन असेसमेंट (मूल्यांकन) टेस्ट को बीमारी के शुरूआती स्टेज में कराएँ तो उनमे से कई मरीज कीमोथेरेपी से बच सकते है।"
इसके अतिरिक्त सर्जिकल मास्टेक्टॉमी या लूम्पेक्टॉमी कराने के लिए स्तन कैंसर के मरीज को कैंसर के खात्में हेतु कई तरह के उपचार से होकर गुजरना पड़ता है जिसमे रेडिएशन थेरेपी, हार्मोन थेरेपी या कीमोथेरेपी जैसी प्रक्रिया शामिल होती है। हालांकि आज के समय में प्रोग्नोस्टिक टेस्ट के साथ-साथ हार्मोन रिसेप्टर टेस्ट्स से ऑन्कोलॉजिस्ट को बेहतर तरीके से अलग-अलग मरीजों के लिए उपचार को कस्टमाइज करने में मदद मिलती है।
डॉ वर्मा ने आगे कहा, "पिछले कुछ सालों तक ज्यादातर स्तन कैंसर के मरीजों को समान और एडमिनिस्टरड कीमोथेरेपी से इलाज कराना पड़ता था। हालांकि अब हमारा मानना है कि जब भी स्तन कैंसर इलाज की बात आती है तो इलाज के लिए कोई एक नियत प्रक्रिया हर केस में फिट हो, यह जरूरी नहीं। कैनअसिस्ट जैसे नए युग के प्रोग्नोस्टिक टेस्ट के साथ हार्मोन रिसेप्टर टेस्ट्स से ऑन्कोलॉजिस्ट को मरीजों की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए कम खतरे को पहचानने में मदद मिलती है। इन टेस्ट्स के जरिये बिना कीमोथेरेपी ड्रग्स से इस कैंसर को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है। इस तरह के ट्रीटमेंट में बहुत ही कम दुष्प्रभाव देखने को मिलता है, बेहतर परिणाम मिलता है और मरीज के जीवन की गुणवत्ता सुधरने के साथ-साथ खर्च भी कम होता है।" महत्वपूर्ण बात यह है कि ईएसएमओ, एनसीसीएन और एएससीओ जैसी टॉप की अंतरराष्ट्रीय ऑन्कोलॉजी संस्था ने भी आज के समय में कीमोथेरेपी के इस्तेमाल के लिए पहले प्रोग्नोस्टिक टेस्ट करने की सलाह देते हैं।
भारत में महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण स्तन कैंसर है। जीवन शैली में बदलाव होने, मोटापा और धूम्रपान में वृद्धि होने, अस्वास्थ्यकर भोजन , शारीरिक गतिविधि न करने से पिछले 20 सालों में स्तन कैंसर होने की दर बढ़ी है। ज्यादा उम्र में माँ बनना भी स्तन कैंसर होने का प्रमुख कारण है। इस बीमारी के सम्बन्ध में फैली अफवाहों को ख़त्म करने, महिलाओं को इस रोग को शुरुआती स्टेज में पता लगाने हेतु शिक्षित करने और वार्षिक स्क्रीनिंग प्रैक्टिस को स्थापित करना समय की मांग है।
ऑन्कोलॉजिस्ट ने इस बीमारी का शुरूआती चरण में जल्दी पता लगाने और प्रोग्नोस्टिक टेस्ट को सरकारी सब्सिडी और इंसेंटिव के जरिये भारतीय कंपनियों को ऐसे टेस्ट को ज्यादा से ज्यादा मरीजों के लिए उपलब्ध कराने की जरुरत पर जोर दिया। भारत में विकसित कैनअसिस्ट ब्रेस्ट एक ऐसा सस्ता प्रोग्नोस्टिक टेस्ट है जो ज्यादा और कम खतरे का संकेत बेहतर सटीकता के साथ देता है।