
डिजिटल डेस्क। सोमवार शाम दिल्ली के लाल किले के पास जब जोरदार धमाका हुआ, तो हर किसी को 20 साल पहले की वो खौफनाक शाम याद आ गई। इस ताजा धमाके में 15 से ज्यादा लोगों की मौत और करीब 30 घायल बताए जा रहे हैं। 30 से अधिक गाड़ियां जलकर राख हो गईं। हादसा लाल किले की प्राचीर के ठीक सामने वाली सड़क पर हुआ यह वही इलाका है जो हमेशा लोगों और गाड़ियों की आवाजाही से गुलजार रहता है।
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली दहली हो। 20 साल और 12 दिन पहले 29 अक्टूबर 2005 की शाम भी राजधानी तीन सिलसिलेवार धमाकों से हिल गई थी। वह शाम धनतेरस की थी… और कुछ ही मिनटों में रौनक से सजी दिल्ली मातम में डूब गई थी।
धनतेरस की दहशतभरी शाम
तारीख 29 अक्टूबर 2005। दिल्ली दिवाली की तैयारियों में डूबी थी। बाज़ारों में रौनक थी, भीड़ अपने चरम पर। लेकिन शाम 5:38 से 6:05 बजे के बीच तीन धमाकों ने पूरे शहर को हिला दिया पहला पहाड़गंज, दूसरा गोविंदपुरी, और तीसरा सरोजिनी नगर मार्केट में। जब धुआं छटा तो सड़कों पर सिर्फ तबाही थी। जलती दुकानों के बीच चीखें गूंज रही थीं, और हर तरफ खून और मलबा बिखरा था। इन धमाकों में 67 लोगों की मौत हुई थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
धमाका नंबर 1 — पहाड़गंज (5:38 PM)
पहला धमाका नेहरू मार्केट, पहाड़गंज में हुआ। धनतेरस की शाम थी, लोग खरीदारी में व्यस्त थे। एक ज्वेलरी शॉप के पास अचानक जोरदार विस्फोट हुआ जिसने आसपास के कई लोगों के शरीर के टुकड़े उड़ा दिए। 17 लोगों की जान गई थी। दुकानों की दीवारें दरक गईं और खिड़कियों के शीशे चकनाचूर हो गए।
धमाका नंबर 2 गोविंदपुरी
पहले धमाके के कुछ मिनट बाद ही दूसरा ब्लास्ट हुआ। कालकाजी मंदिर के पास दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की एक बस में एक संदिग्ध बैग मिला। बस ड्राइवर कुलदीप सिंह और कंडक्टर बुद्ध प्रकाश ने तुरंत समझदारी दिखाई और बस को सुनसान इलाके की ओर ले गए। सभी यात्रियों को उतार दिया गया। कुलदीप सिंह ने बैग उठाकर दूर फेंकने की कोशिश की, तभी जोरदार धमाका हुआ। उनकी सूझबूझ से सैकड़ों जानें बच गईं, हालांकि खुद उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी।
धमाका नंबर 3 सरोजिनी नगर मार्केट
सबसे बड़ा और विनाशकारी धमाका सरोजिनी नगर में हुआ। शाम के 6 बजे थे और बाजार में पैर रखने की जगह नहीं थी। एक जूस की दुकान पर किसी ने बैग छोड़ दिया था। जब दुकान के कर्मचारी ने बैग देखा तो उसने मालिक लालचंद सलूजा को बताया। उन्होंने बैग पुलिस को देने का फैसला किया, लेकिन जैसे ही वह बैग लेकर आगे बढ़े, भयंकर विस्फोट हो गया।
कुछ ही सेकंड में बाजार आग की लपटों में घिर गया। आसपास रखे सिलेंडर भी फट गए। जब धुआं छटा तो हर तरफ चीथड़े और लाशें बिखरी थीं। इस धमाके में 50 से ज्यादा लोग, जिनमें 9 महीने का बच्चा भी शामिल था, मारे गए। सैकड़ों घायल हुए कई ने हाथ-पैर खो दिए, कुछ हमेशा के लिए अपनों से बिछड़ गए।
कानूनी कार्रवाई और सजा
इन धमाकों की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा ने ली थी। जांच में श्रीनगर के तीन संदिग्ध तारिक अहमद डार, मोहम्मद फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह के नाम सामने आए। 11 नवंबर 2005 को तारिक अहमद डार को गिरफ्तार किया गया और उसे मास्टरमाइंड बताया गया। 12 साल की लंबी सुनवाई के बाद 2017 में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने सिर्फ डार को दोषी ठहराया और बाकी दो आरोपियों को बरी कर दिया। डार को 10 साल की सजा हुई, लेकिन वह पहले ही 11 साल जेल में बिता चुका था, इसलिए उसे रिहा कर दिया गया।