एजेंसी, आरा। पिछले साल फिल्म स्त्री-2 आई थी। आमतौर पर फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक उठ जाते हैं, लेकिन इस फिल्म में दर्शक केवल पवन सिंह का गाना झूठी खाई थी कसम जो निभाई नहीं... सुनने के लिए आखिर तक रुके रहे। यह पावर स्टार का जलवा था, और राजनीति में भी उन्होंने इसे साबित किया। लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार बनकर उन्होंने अकेले दम पर दो लाख 74 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए। उनकी चुनावी मुहिम से शाहाबाद में एनडीए को बड़ा झटका लगा और चारों सीट गंवानी पड़ी।
एनडीए में पावर स्टार का जलवा
अब हालात बदल चुके हैं। पावर स्टार उपेंद्र कुशवाहा के साथ खड़े हैं। पर्दे के पीछे कई समीकरण बन रहे हैं, लेकिन इतना तय है कि एनडीए इस बार उन्हें उनके कद के मुताबिक महत्व दे रहा है और उनकी लोकप्रियता के सहारे शाहाबाद में समीकरण अपने पक्ष में करने की उम्मीद कर रहा है। शाहाबाद का क्षेत्र एनडीए के लिए हमेशा चुनौती भरा रहा है। 2020 के चुनाव के बाद यहां समीकरण असंतुलित रहे।
पवन सिंह ने बिगाड़ा समीकरण
पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के अलग होने से एनडीए कमजोर हुआ। पिछले साल लोकसभा चुनाव में सब साथ आए, तो पवन सिंह का फैक्टर बड़ा हो गया और समीकरण फिर उलझ गए। नतीजा शाहाबाद के चारों जिलों की सीटों पर एनडीए का खाता नहीं खुला।
भोजपुर में भी हार
भोजपुर जिले की सात में से पांच सीटों पर भाजपा-जदयू को हार मिली। आरा सदर और बड़हरा सीटों पर मामूली अंतर से जीत मिली। शाहाबाद के चारों जिलों में राजपूत और कुशवाहा वोटरों की बड़ी संख्या है। यदि ये एकजुट होकर वोट करें तो नतीजे निर्णायक हो सकते हैं।
हाल ही में उपेंद्र कुशवाहा और पवन सिंह की गलबहियां डाले तस्वीर वायरल हुई है। भाजपा इसे एकजुटता का संदेश मानकर प्रचारित कर रही है।
एनडीए के लिए अहम तस्वीर
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने आरा से अपनी हार के कारणों पर जातीय बयान दिया था। इसके बाद पावर स्टार और कुशवाहा की जोड़ी का संदेश एनडीए के लिए और भी प्रासंगिक हो गया है। कहा जा रहा है कि पवन सिंह को साधने की स्क्रिप्ट शीर्ष स्तर पर लिखी गई है और शाहाबाद में उनकी भूमिका इस चुनाव में महत्वपूर्ण होगी।
भाजपा के एक नेता का कहना है कि पवन सिंह की भूमिका केवल किसी सीट से चुनाव लड़ने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे समीकरण को एकजुट करने में भी उनकी अहम जिम्मेदारी होगी।