
डिजिटल डेस्क। केंद्र सरकार के आठवें वेतन आयोग (8th Pay Commission) की शर्तों पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। ताजा टर्म्स ऑफ रेफरेंस (Terms of Reference) में करीब 69 लाख पेंशनर्स और फैमिली पेंशनर्स को आयोग के दायरे से बाहर रखा गया है। इस फैसले से नाराज ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लॉइज फेडरेशन (AIDEF) ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है और शर्तों में सुधार की मांग की है।
AIDEF का कहना है कि 7वें वेतन आयोग में पेंशन संशोधन का प्रावधान स्पष्ट रूप से शामिल था, लेकिन इस बार 8वें वेतन आयोग से यह क्लॉज हटा दिया गया है। फेडरेशन का आरोप है कि इससे पहले से रिटायर कर्मचारियों की पेंशन में बढ़ोतरी पर रोक लग सकती है।
फेडरेशन ने कहा, “जिन लोगों ने दशकों तक देश की सेवा की, आज उन्हें जीवन के अंतिम पड़ाव में नजर अंदाज किया जा रहा है। यह फैसला न केवल अनुचित है बल्कि नैतिक रूप से भी गलत है।”
फेडरेशन ने सरकार से चार अहम मांगें रखी हैं:
1. पेंशनर्स और फैमिली पेंशनर्स को 8वें वेतन आयोग के दायरे में शामिल किया जाए।
2. नई वेतन और पेंशन संरचना 1 जनवरी 2026 से लागू की जाए।
3. कम्यूटेड पेंशन की बहाली अवधि 15 साल से घटाकर 11 साल की जाए।
4. हर पांच साल में पेंशन में 5% की वृद्धि की जाए, जैसा कि संसद की स्थायी समिति ने पहले सुझाव दिया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि वेतन आयोग की सफलता महंगाई दर (Inflation) के सही आंकड़ों पर निर्भर करती है। अभी हाउसिंग इंफ्लेशन की गणना सरकारी मकानों के किराए और लाइसेंस फीस के आधार पर होती है, जो असल बाजार किराए से मेल नहीं खाती।
2017 में जब 7वें वेतन आयोग ने HRA (House Rent Allowance) बढ़ाया था, तब हाउसिंग इंफ्लेशन 4.7% से बढ़कर 8.45% पहुंच गया, जबकि वास्तविक बाजार किराए में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ था। यह उदाहरण दिखाता है कि गलत आंकड़े वेतन तय करने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित 8वां वेतन आयोग अगले 18 महीनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। आयोग की सिफारिशें केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनर्स के वेतन, भत्तों और पेंशन ढांचे को तय करेंगी।
हालांकि, यूनियनों का कहना है कि अगर सरकार ने पेंशनर्स से जुड़ी खामियों को दुरुस्त नहीं किया, तो 8वां वेतन आयोग अपने उद्देश्य से भटक जाएगा और देशभर में असंतोष बढ़ सकता है।