
मल्टीमीडिया डेस्क। दुनिया में कहीं भी बिना नंदी के शिवलिंग आपने नहीं देखा होगा। जहां शिव लिंग होगा वहां बैठे हुए नंदी जरूर स्थापित किए गए होंगे। मगर, आज हम आपको देश के ऐसे दो मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां एक जगह नंदी खड़े हैं और दूसरे शिवालय में नंदी है ही नहीं। जानते हैं इनकी कहानी...
उज्जैन में है खड़े नंदी की प्रतिमा
उज्जैन में महर्षि सांदीपनि का आश्रम स्थित है। जहां, भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिनों में 16 कलाओं और 64 विद्याओं का ज्ञान हासिल किया था। जब भगवान शिव का एक मंदिर भी है, जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने यहां पधारे, तो गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदीजी खड़े हो गए। यही वजह है कि यहां नंदीजी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भक्तों को होते हैं। देश के अन्य शिव मंदिरों में नंदी की बैठी प्रतिमाएं ही नजर आती हैं।
शिवालय में नंदी का होना क्यों अनिवार्य है और क्यों कहते हैं उनके कान में मनोकामना
नासिक में नहीं है नंदी
नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है, जिसमें नंदी नहीं है। अपनी तरह का यह एक अकेला शिवमंदिर है, जहां से नंदी नदारद हैं। पुराणों में कहा गया है कि कपालेश्वर महादेव मंदिर नामक इस स्थल पर किसी समय में भगवान शिवजी ने निवास किया था। यहां नंदी के अभाव की कहानी भी बड़ी रोचक है।
शिवजी ने माना नंदी को गुरु
यह उस समय की बात है जब ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पांचवां मुख निंदा किया करता था। तब शिव जी ने उस निंदा वाले मुख को काट डाल, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे, लेकिन उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला।
एक दिन जब वह सोमेश्वर में बैठे थे, तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। कहा जाता है कि यह बछड़ा नंदी था। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गया और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया। इसीलिए इस मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की प्रतिमा नहीं है।
