सनातन को कोसने वाले नेता नहीं जानते, Social Justice पर धर्म ग्रंथों में कही गई हैं ये बातें
Sanatan Dharma सनातन धर्म में अलग-अलग आध्यात्मिक परंपरा का बराबर सम्मान किया गया है। सभी के विचारों को इसमें समाहित किया गया है।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Mon, 04 Sep 2023 02:04:16 PM (IST)
Updated Date: Mon, 04 Sep 2023 02:05:25 PM (IST)
सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं, जिनका शाश्वत महत्व बताया गया है।HighLights
- सनातन धर्म में एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप जैसे मार्गों की प्रधानता बताई गई है।
- सनातन धर्म सिखाता है कि सभी प्राणियों में ईश्वर मौजूद होता है।
- सनातन धर्म दुनिया की सबसे पुरानी जीवित आध्यात्मिक परंपरा है।
Sanatan Dharma। सनातन धर्म दुनिया की सबसे पुरानी जीवित आध्यात्मिक परंपरा है। इस परंपरा में एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप जैसे मार्गों की प्रधानता बताई गई है। सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं, जिनका शाश्वत महत्व बताया गया है।
सभी प्राणियों में ईश्वर मौजूद
सनातन धर्म सिखाता है कि सभी प्राणियों में ईश्वर मौजूद होता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि कण-कण में ईश्वर विद्यमान होता है। सनातन धर्म का यह मूल सिद्धांत ही किसी पूर्वाग्रह और भेदभाव की भावना पर चोट करता है।
सनातन धर्म को कोई संस्थापक नहीं
दुनिया में कई तरह के पंथ या मत है, जिनका कोई संस्थापक रहा है, लेकिन एक मात्र सनातन ऐसा धर्म है, जिसका कोई संस्थापक नहीं है। सनातन धर्म में अलग-अलग आध्यात्मिक परंपरा का बराबर सम्मान किया गया है। सभी के विचारों को इसमें समाहित किया गया है।
सनातन धर्म क्या है?
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, 'सनातन' शब्द का अनुवाद शाश्वत होता है और 'धर्म' शब्द से आशय कर्तव्य निष्ठा, कर्तव्य पालन है। हिंदू धर्म मूल रूप से सनातन धर्म का आधुनिक रूप है, जो मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे पुरानी आध्यात्मिक परंपरा है।
Social Justice पर धर्मग्रंथों में ये विचार
- “कोई भी व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं होता है और कोई भी व्यक्ति निम्न नहीं होता है। सभी भाई-बहन हैं और उन्नति व समृद्धि के लिए आगे बढ़ रहे हैं।” - ऋग्वेद V.60.5
- जो व्यक्ति सभी प्राणियों को खुद को और खुद को संसार के सभी प्राणियों में देखता है, उस ज्ञान के कारण उसे कोई घृणा महसूस नहीं होती है। - ईशावास्योपनिषद 1.6
- जिस व्यक्ति ने आत्मिक रूप से सर्वत्र समान दृष्टि से यौगिक एकीकरण प्राप्त कर लिया है, वह खुद को सभी प्राणियों में स्थित मानता है और सभी प्राणियों को स्वयं में स्थित मानता है। - भगवत गीता 6.29
- हिंदू सामाजिक परंपराओं में किसी बच्चे के जन्म के बाद सूतक पाला जाता है, क्योंकि हर व्यक्ति को जन्म के समय शूद्र माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से नहीं, अपने कर्मों से श्रेष्ठ होता है।
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