Chanakya Niti: जंगल में सीधे वृक्ष जल्दी कटते हैं, आचार्य चाणक्य की सीख, हद से ज्यादा सीधा न रहें
Chanakya Niti आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य को बहुत अधिक सरल और सीधा स्वभाव वाला भी नहीं होना चाहिए
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Mon, 08 May 2023 11:45:13 AM (IST)
Updated Date: Mon, 08 May 2023 11:45:27 AM (IST)

Chanakya Niti । आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतिशास्त्र के तहत कई ज्ञान की बातें बताई है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि व्यक्ति को अपना व्यवहार हमेशा विनम्र रखना चाहिए लेकिन इतना ज्यादा विनम्र भी नहीं होना चाहिए कि लोग उसे सीधा समझ कर फायदा उठाने लगे। आचार्य चाणक्य ने इस बात को इस श्लोक के जरिए समझाया है -
नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ।।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य को बहुत अधिक सरल और सीधा स्वभाव वाला भी नहीं होना चाहिए क्योंकि जंगल में जाकर देखें तो सीधे वृक्ष काट दिए जाते हैं और टेढ़े-मेढ़े गांठों वाले वृक्ष खड़े रहते हैं।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक मनुष्य को सरल और सीधे स्वभाव के होने के कई नुकसान भी हैं। ऐसे लोगों को सामान्य तौर पर दुर्बल और मूर्ख मान लिया जाता है। हर समय कष्ट देने का प्रयास किया जाता है। सीधा व्यक्ति हर व्यक्ति के के लिए सुगम होता है जबकि टेढ़े व्यक्ति से सब बचने की कोशिश करते हैं और कोई उसका फायदा नहीं उठा पाता है।
यत्रोदकं तत्र वसन्ति हंसाः तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति ।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यं पुनस्त्यजन्ते पुनराश्रयन्ते ।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जहां पानी होता है, वहीं पर हमेशा हंस निवास करते हैं और जब पानी सूख जाता है तो हंस उस स्थान को छोड़ देते हैं। मनुष्य को हंस के समान स्वार्थी नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे कभी त्याग करते हैं और कभी आश्रय लेते हैं।
आचार्य चाणक्य के श्लोक में यह अर्थ निकलता है कि मनुष्य ही नहीं, देवता भी स्वार्थी हैं। जब तक कोई स्तुति करता है तो देवता भी संबंध रखते हैं, अन्यथा छोड़ देते हैं। लेकिन चाणक्य इसे ठीक नहीं मानते। उनका मानना है कि सुख में ही नहीं, दुख में भी साथ नहीं छोड़ना चाहिए, यदि किसी ने समय पर आपके लिए कुछ किया है। संबंधों को तोड़ना बुद्धिमान व्यक्ति का स्वभाव या गुण नहीं है। कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है।
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्।
तडागोदरसंस्थानां परवाह इवाऽम्भसाम्।।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य द्वारा कमाए गए धन का सही उपयोग यही है कि वह उसे ठीक ढंग से काम में लाए। उसका दान करे, उसका उचित उपभोग करे। सही अर्थों में यही धन की रक्षा है। यदि धन कमाने के बाद उसका सही उपयोग नहीं किया जाएगा तो धन कमाने का लाभ ही क्या है? जैसे यदि तालाब में भरे हुए पानी को निकाला नहीं जाएगा तो वह सड़ जाएगा। सड़ने से बचाने के लिए उसका उपयोग आवश्यक है। इसी तरह तालाब की रक्षा हो सकती है। धन की रक्षा का भी उपाय यह है कि उसका सदुपयोग किया जाए।
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