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धर्म डेस्क। रामायण की कथा में हनुमान जी द्वारा लंका दहन अधर्म पर धर्म की जीत और रावण के अहंकार के अंत का शंखनाद माना जाता है। जब रावण ने माता सीता का संदेश लेकर आए हनुमान जी का अपमान किया और उनकी पूंछ में आग लगवा दी, तब बजरंगबली ने अपनी शक्ति से स्वर्ण नगरी लंका को भस्म कर दिया। परंतु, एक जिज्ञासा सदैव बनी रहती है कि पूरी लंका जलाने वाले पवनपुत्र ने रावण के मुख्य राजमहल को क्यों छोड़ दिया?
विभिन्न रामायण प्रसंगों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसके पीछे हनुमान जी की गहरी कूटनीति और कुछ आध्यात्मिक कारण छिपे थे:
लंका दहन के दौरान हनुमान जी ने देखा कि विभीषण का भवन राक्षसी नगरी में भी भक्ति का केंद्र था। वहां न केवल 'हरि' नाम का जाप हो रहा था, बल्कि भवन पर शंख, चक्र और गदा के पवित्र चिह्न भी अंकित थे। हनुमान जी जानते थे कि विभीषण प्रभु श्री राम के परम भक्त हैं। भक्त के घर को सुरक्षित रखना भगवान के दूत का धर्म था। चूंकि विभीषण का आवास राजमहल परिसर के अत्यंत समीप था, इसलिए उस क्षेत्र को अग्नि से सुरक्षित रखा गया।

हनुमान जी के लंका आगमन का मुख्य उद्देश्य माता सीता की खोज और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना था। रावण का महल और अशोक वाटिका भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से सटे हुए थे। हनुमान जी को अंदेशा था कि यदि वे मुख्य महल को प्रचंड अग्नि के हवाले करते हैं, तो उसकी लपटें अशोक वाटिका तक पहुंचकर माता सीता के लिए संकट पैदा कर सकती थीं।
एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि लंका का निर्माण रावण की शिव भक्ति के फलस्वरुप हुआ था। हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के रुद्रावतार हैं। चूंकि रावण के महल में महादेव का आध्यात्मिक वास माना जाता था, इसलिए हनुमान जी ने अपने ही आराध्य के निवास को क्षति नहीं पहुंचाई। उन्होंने केवल उस 'स्वर्ण नगरी' के अहंकार को जलाया जिसने धर्म की मर्यादा का उल्लंघन किया था।
हनुमान जी का उद्देश्य पूरी लंका का सर्वनाश करना नहीं, बल्कि रावण के आत्मविश्वास को झकझोरना था। पूरी लंका को जलाकर और राजमहल को सुरक्षित छोड़कर उन्होंने यह संदेश दिया कि श्री राम की शक्ति के सामने रावण के सुरक्षा घेरे शून्य हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रहार था, जिसका अर्थ था - "तुम्हारे पास महल तो बचेगा, पर उसमें रहने वाला कोई नहीं।"
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