
धर्म डेस्क। हिंदू शास्त्रों में पत्नी को ‘अर्धांगिनी’ कहा गया है अर्थात जीवन और धर्म में पति की समान सहभागी। इसके बावजूद समाज में कई बार ऐसे उदाहरण सामने आते हैं, जहां पुरुष अपनी ताकत और अधिकार के अहंकार में पत्नी के साथ अन्याय, अपमान या क्रूर व्यवहार करते हैं। गरुड़ पुराण ऐसे आचरण को घोर पाप मानता है और बताता है कि इसका दंड केवल इस लोक तक सीमित नहीं रहता, बल्कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
गरुड़ पुराण के अनुसार, जो पति बिना कारण अपनी पत्नी को मानसिक या शारीरिक कष्ट देता है, उसे यमलोक में ‘कुम्भीपाक’ नामक नरक में दंडित किया जाता है। यहां पापियों को खौलते तेल के कड़ाहों में डालने जैसी भयावह यातनाएं दी जाती हैं। यह दंड उन लोगों के लिए बताया गया है जो पत्नी की मर्यादा की रक्षा करने के बजाय उसका तिरस्कार करते हैं।
ग्रंथ यह भी चेतावनी देता है कि यदि कोई पुरुष पराई स्त्री के मोह में पड़कर पत्नी से विश्वासघात करता है, उसे छोड़ देता है या उसे प्रताड़ित करता है, तो उसे अगले जन्म में असाध्य रोगों और दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। गरुड़ पुराण में पत्नी के साथ किया गया विश्वासघात अत्यंत गंभीर पापों में गिना गया है।
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जो व्यक्ति अपनी पत्नी को अपशब्द कहता है, उसे भूखा रखता है या अपमानित करता है उसके द्वारा किए गए दान, पूजा-पाठ और तीर्थ यात्राएं भी फलहीन मानी जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, गृहस्थ जीवन में पत्नी को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है और जहां लक्ष्मी का अपमान होता है, वहां सुख-समृद्धि टिक नहीं पाती।
गरुड़ पुराण का यह संदेश केवल दंड की कथा नहीं, बल्कि नैतिक चेतना का मार्गदर्शन है। यह याद दिलाता है कि शक्ति का अर्थ अत्याचार नहीं, बल्कि संरक्षण और सम्मान है। जिस घर में स्त्री का मान-सम्मान सुरक्षित होता है, वहीं शांति, समृद्धि और सामाजिक संतुलन की नींव मजबूत होती है।
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