12 जून को गुरु अस्त होने से मांगलिक कार्यों पर लगेगी रोक, भूलकर भी न करें ये काम
12 जून को गुरु ग्रह अस्त हो जाएगा, जिससे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होंगे। 6 जुलाई से देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास शुरू होगा, जो 1 नवंबर तक चलेगा। इस दौरान केवल पूजा-पाठ, तीर्थ यात्रा, व्रत-उपवास जैसे कार्यों की अनुमति रहेगी।
Publish Date: Wed, 11 Jun 2025 09:24:25 PM (IST)
Updated Date: Thu, 12 Jun 2025 12:38:17 AM (IST)
12 जून को गुरु होंगे अस्त। (फाइल फोटो)HighLights
- विवाह, जनेऊ, गृह प्रवेश, शिलान्यास सभी बंद।
- 6 जुलाई से चातुर्मास शुरू, 1 नवंबर तक चलेगा।
- तीर्थ यात्रा, दान, पूजा-पाठ पर कोई रोक नहीं।
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। मंगल कार्यों के लिए विशेष माने जाने वाले गुरु ग्रह 12 जून गुरुवार को अस्त हो जाएंगे। इसके साथ ही विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, मंदिर प्राण प्रतिष्ठा, शिलान्यास जैसे मांगलिक कार्यों पर पूर्ण विराम लग जाएगा। गुरु के अस्त रहते कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। उसके बाद देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास शुरू हो जाएगा, जिसके कारण 1 नवंबर तक शुभ कार्य वर्जित माने जाएंगे।
विवाह, सगाई से लेकर गृह प्रवेश तक पर रोक
- पंडित विनोद गौतम के अनुसार, जब गुरु अस्त हो जाता है, तो विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत (जनेऊ), मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, भवन प्रवेश, नया घर खरीदना या कोई नई योजना शुरू करना अशुभ माना जाता है। यह धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त समय होता है जिसमें भगवान की कृपा बाधित मानी जाती है।
गुरु ग्रह 9 जुलाई को भले ही उदय हो जाएंगे, लेकिन तब तक चातुर्मास लग चुका होगा। इस कारण 1 नवंबर देवउठनी एकादशी तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे। चातुर्मास में होते हैं ये कार्य
पंडित रामजीवन दुबे के अनुसार, चातुर्मास में कुछ कार्यों की अनुमति होती है। इनमें तीर्थ यात्रा, दान, व्रत, उपवास, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, अन्नप्राशन, पुराने निर्माण कार्य (जो पहले से चल रहे हों), वाहन या गहनों की खरीदारी, घर की मरम्मत या रेनोवेशन शामिल हैं। इनके लिए कोई विशेष मुहूर्त आवश्यक नहीं होता और गुरु अस्त या चातुर्मास का प्रभाव इन कार्यों पर नहीं पड़ता।
भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे
- हिंदू पंचांग के अनुसार, 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस समय से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी तक चलता है। इस अवधि को धार्मिक अनुशासन, साधना, संयम और उपवास के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
चातुर्मास के दौरान न केवल विवाह आदि पर रोक होती है, बल्कि साधु-संत भी एक ही स्थान पर चार माह तक प्रवास करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान भगवान के सोने के कारण शुभ कार्य करना अनिष्टकारी होता है। अगला शुभ मुहूर्त
गुरु के 9 जुलाई को उदय होने के बाद भी शुभ कार्यों की शुरुआत नहीं होगी, क्योंकि चातुर्मास पहले ही आरंभ हो चुका होगा। अगला प्रमुख मुहूर्त 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी के दिन आएगा। इस दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही शुभ कार्यों की फिर से शुरुआत हो सकेगी।