धर्म डेस्क, इंदौर: भगवान जगन्नाथ के भक्तों में उनके प्रति अशिम श्रद्धा के भाव हैं, न केवल ओड़िसा के पुरी बल्की देश भर में भगवान बहुत सारे भव्य मंदिर हैं, जहां श्रद्धालू भक्ति-भाव से अपने प्रभू जगन्नाथ की अराधना करते हैं। ऐसा ही एक मंदिर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में स्थित है। जहां पिछले 29 सालों से भगवान महाबाहु विराजमान हैं। खास बात यह है कि इस मंदिर की समस्त पूजा-विधि चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी के तर्ज पर आधारित है।
बता दें कि बिलासपुर के रेलवे परिक्षेत्र में स्थित श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्की यह पुरीधाम की परंपराओं को जीवंत रखने वाला एक सांस्कृतिक स्थल भी बन गया है। हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ मास में यहां भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा विशेष भव्यता के साथ निकाली जाएगी। मंदिर की स्थापना से लेकर नवकलेवर और रथयात्रा तक, यहां हर परंपरा पुरी की तर्ज पर निभाई जाती है। भक्तों की गगनभेदी जयघोष, सजीव रथ और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों से गूंजता यह परिसर, छत्तीसगढ़ में ओडिशा की आस्था का अद्भुत संगम बन गया है।
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बता दें कि 26 नवंबर 1996 को इस मंदिर की स्थापना की गई थी। मंदिर की स्थापना के समय पुरी के राजा दिव्य सिंहदेव और मुख्य पंडा रमेश राजगुरु स्वयं उपस्थित थे। मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की काष्ठ से बनी हैं, जिन्हें पुरी के कारीगर गजेंद्र महाराणा ने गढ़ा था। वर्ष 2015 में यहां पहली बार नवकलेवर कार्यक्रम हुआ, जिसमें भगवान का ब्रह्मपरिवर्तन भी हुआ।
यहां महाप्रभु को ‘महाबाहु’ के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों का स्वागत सदैव खुली बाहों से करते हैं। इस साल 11 जून को महाप्रभु का महास्नान पर्व मनाया जाएगा, वहीं 27 जून को रथ महोत्सव की गूंज रेलवे क्षेत्र से लेकर पूरे शहर में सुनाई देगी।
आषाढ़ मास का इस मंदिर और रथयात्रा से विशेष नाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान का जन्म भी इसी माह हुआ और समुद्र के रास्ते उनकी प्रतिमा की लकड़ी भी आषाढ़ में ही आई। स्नान पूर्णिमा को 108 कलश जल और 64 जड़ी-बूटियों से भगवान का स्नान कराया जाता है, जिसके बाद वे 15 दिन बीमार रहते हैं और फिर रथयात्रा में विराजते हैं।
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बिलासपुर का यह मंदिर श्रद्धा, परंपरा और संस्कृति का अद्भुत केंद्र है। आषाढ़ मास की शुरुआत के साथ यहां उत्सवों की श्रृंखला शुरू हो जाती है। स्नान पूर्णिमा के दिन, भगवान को 108 कलशों और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से स्नान कराकर उन्हें आराम दिया जाता है, जो उनके मानवीय स्वरूप को दर्शाता है। इस दौरान मंदिर में विशेष उपचार की व्यवस्था की जाती है और उन्हें ‘अनासक्त’ रखा जाता है।
रथयात्रा में हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। रंगबिरंगे वस्त्रों में रथ खींचते भक्त, ढोल-मंजीरों की ताल पर झूमती टोली और मंदिर के पंडों द्वारा की जाने वाली पारंपरिक पूजा यह सब मिलकर रेलवे परिक्षेत्र को एक आध्यात्मिक धाम में बदल देते हैं। रथयात्रा के दिन भगवान अपने बहन और भाई के साथ नगर भ्रमण करते हैं, जो भक्तों के लिए वर्ष भर की सबसे बड़ी भक्ति-घड़ी होती है।