मल्टीमीडिया डेस्क। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय राहु देवताओं के बिच छल से बैठ गया था। समुद्र मंथन में निकले चौदह रत्न में अम्रत भी था। जब मोहनी रूप धारण कर भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु भी देवताओं का रूप धारण कर छल से देवताओं की पंक्ति में बैठ गया। उसने देवताओं के साथ-साथ अमृत पान कर लिया।
सूर्य और चंद्रमा ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया। उन्होंने भगवान विष्णु को तत्कल इसके बारे में बताया तो क्रोध में भगवान विष्णु ने चक्र से राहु का सिर काट दिया, लेकिन तब तक राहु अमृतपान कर चुका था। इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई उसका मस्तक वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु बन गया।
देवताओं के साथ छल-छदम का दुष्परिणाम तो आखिरकार राहु को भुगतना ही पड़ा। मगर, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने दुष्कर्म पर पछताप भी नहीं होता। राहु के साथ भी ऐसा ही था। चंद्रमा और और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए पकड़ा था, तब से राहु उनसे बैर रखता है। वह समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने की कोशिश करता है, जिससे ग्रहण लगता है।
राहु और केतु ग्रह तो है नहीं, तो क्या हैं
राहु और केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। इन्हें छाया ग्रह की क्षेणी में रखा गया है। दरअसल, हर वयक्ति या वस्तु की छाया होती है। उसी तरह ग्रहों की छाया को भी ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। जब सूर्य, चंद्रमा और धरती एक सीध में आ जाते हैं, तो सूर्य की छाया को यदि पृथ्वी रोक लेती है, तो चंद्रमा दिखाई नहीं देता है।
यह भी पढ़ेंः इस श्राप के कारण शिवजी ने काटा था गणेशजी का सिर
इस स्थिति में चंद्र ग्रहण होता है। वहीं, जब सूर्य और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है, तो वह सूर्य की छाया को धरती तक नहीं पहुंचने देता है, जिससे सूर्य ग्रहण होता है। यानी पिंड की छाया दूसरे पिंडों पर पड़ने से ही सूर्य और चंद्र ग्रहण होते हैं। यह छाया ही राहु और केतु कहलाती है।
ज्योतिष में गणना बिंदु हैं राहु और केतु
सूर्य के चारों ओर धरती परिक्रमा करती है और धरती के चारों ओर चंद्रमा घूमता है। ये दोनों परिभ्रमण पथ एक-दूसरे को 2 बिंदुओं पर काटते हैं। सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी एवं सूर्य, चन्द्र के परिभ्रमण-पथ पर कटने वाले दोनों बिंदु लंबवत होते हैं। इन्हीं बिंदुओं के एक सीध में होने पर अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण और पूर्णिमा की रात को चंद्र ग्रहण होता है। प्राचीन ज्योतिषियों ने इन बिंदुओं को महत्वपूर्ण समझते हुए इन बिंदुओं का नाम 'राहु' और 'केतु' रखा था।
कुंडली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर होते हैं, जो सामान्यत: कुंडली में आमने-सामने स्थित होते हैं। इनकी दैनिक गति 3 कला और 11 विकला हैं। ज्योतिष के अनुसार 18 वर्ष 7 माह 18 दिवस और 15 घटी- ये संपूर्ण राशियों में भ्रमण करते हैं।
यह भी पढ़ेंः तो क्या सच में धरती गोल नहीं समतल है, इंटरनेट पर छिड़ी बहस