दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्योहार है, जहां बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनके सुख, समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं। भाई भी जीवनभर रक्षा का संकल्प लेते हैं। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि आत्मीयता और समर्पण का प्रतीक है, जो रिश्ते को और गहरा बनाता है।
त्योहार के दिन अक्सर 'भद्रा काल' का जिक्र होता है। राखी बांधने से पहले पंडित या घर के बड़े भद्रा काल समाप्त होने का इंतजार करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, रावण की बहन शूर्पणखा ने भद्रा काल में उसे राखी बांधी थी, जिसके बाद रावण का अंत हुआ। इसीलिए माना जाता है कि इस समय राखी बांधना अनिष्टकारी हो सकता है।
राखी एक साधारण धागा नहीं, बल्कि प्रेम, सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक है। ऐसे पवित्र संकल्प के लिए शुभ समय का होना आवश्यक है। रक्षाबंधन के दिन चंद्र देव, शिव और विष्णु की विशेष कृपा मानी जाती है, जो भद्रा काल में राखी बांधने पर पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होती।
पुराणों के अनुसार, भद्रा देवी शनि देव की बहन हैं। उनका स्वभाव तेज और गुस्से वाला माना जाता है, और उनके रुष्ट होने पर शुभ कार्यों में विघ्न पड़ता है। भद्रा काल को 'विष्टि करण' भी कहते हैं, जो हिंदू पंचांग के अनुसार अशुभ समय है। यह दिन या रात किसी भी समय आ सकता है। विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन या राखी बांधने जैसे मांगलिक कार्य इस दौरान टाले जाते हैं।