
सद्गुरु (ईशा फाउंडेशन के संस्थापक आध्यात्मिक गुरु)। सद्गुरु कहते हैं कि अस्तित्व के स्तर पर हम हमेशा 'इसी पल' में होते हैं, लेकिन सामाजिक रूप से नए वर्ष का विशेष महत्व है। यह वह समय है जब हमें पीछे मुड़कर देखना चाहिए कि हमने पिछले एक वर्ष में स्वयं के साथ, इस धरती के साथ और पूरी मानवता के साथ कैसा व्यवहार किया। यह जीवन के लिए नए लक्ष्य और नए दृष्टिकोण (Vision) को तय करने का श्रेष्ठ अवसर है।
पुराने समय में बुद्ध, जीसस या विवेकानंद जैसे महापुरुषों का एक 'विजन' होता था और लोग उनके पीछे चलते थे। लेकिन आज हर व्यक्ति का दिमाग सक्रिय है। सद्गुरु चेतावनी देते हैं कि यह एक असाधारण संभावना भी है और एक बड़ा खतरा भी। यदि दिमाग दिशाहीन और बेकाबू हो, तो वह दुनिया को भारी नुकसान पहुँचा सकता है। आज परिस्थितियां मनुष्य को बना रही हैं, जबकि मनुष्य को अपनी परिस्थितियां खुद बनानी चाहिए।
आधुनिक विज्ञान ने बेहतरीन कंप्यूटर, कारखाने और मशीनें बनाने पर तो पूरा ध्यान दिया है, लेकिन एक 'बेहतर इंसान' कैसे बनाया जाए, इस पहलू को नजरअंदाज कर दिया है। सद्गुरु के अनुसार, योग वह तकनीक है जो मनुष्य को भीतर से संवारती है। हमारे पास सुख के बेमिसाल साधन तो हैं, लेकिन अगर इंसान भीतर से अच्छा नहीं है, तो एक सनकी दिमाग का व्यक्ति मात्र एक बटन दबाकर पूरी दुनिया को तबाह कर सकता है।
सद्गुरु के अनुसार, दुनिया के अधिकतर झगड़ों की जड़ 'निजी दृष्टिकोण' है। जब मेरा नजरिया आपके नजरिए से अलग होता है, तो टकराव पैदा होता है। हमें एक ऐसा व्यापक दृष्टिकोण (Vision) विकसित करने की जरूरत है जहाँ टकराव की कोई जगह न हो।
इस नए साल में हमारा लक्ष्य एक ऐसे विश्व का निर्माण होना चाहिए जो प्रेम, शांति और आनंद से भरा हो। यह साल हमारे लिए एक मौका है कि हम अपने जीवन का लक्ष्य इस तरह तय करें कि वह हजारों लोगों के लिए प्रेरणा बन जाए। जब हम सामूहिक रूप से शांति और प्रेम का विजन रखेंगे, तभी एक खुशहाल दुनिया की रचना संभव होगी।
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